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मेरे प्रिय शिक्षक पर निबंध (My Favourite Teacher Essay in Hindi)

मेरे प्रिय शिक्षक पर निबंध (My Favourite Teacher Essay in Hindi)

Edited By Nitin | Updated on Sep 17, 2024 11:11 AM IST
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मेरे प्रिय शिक्षक पर निबंध (My Favourite Teacher Essay in Hindi) : शिक्षक हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बचपन से ही वे हमारे चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सबके जीवन मे कोई न कोई प्रिय शिक्षक (My Favourite Teacher Essay in Hindi) होता है। यहां "मेरे प्रिय शिक्षक"(My Favourite Teacher Essay in Hindi) पर कुछ निबंध दिए गए हैं जो छात्र-छात्राओं के लिए अपने प्रिय शिक्षक के बारे में लिखने के कौशल को बढ़ाने के साथ ही निबंध लिखने की क्षमता को भी बढाएंगे।

मेरे प्रिय शिक्षक पर निबंध (My Favourite Teacher Essay in Hindi)
मेरे प्रिय शिक्षक पर निबंध (My Favourite Teacher Essay in Hindi)

मेरे प्रिय शिक्षक पर निबंध (My Favourite Teacher Essay in Hindi)

इस लेख में आपको मेरे प्रिय शिक्षक पर निबंध (My Favourite Teacher Essay in Hindi) संक्षिप्त यानी 100 शब्दों में मेरे प्रिय शिक्षक पर निबंध (100 Word Essay On My Favourite Teacher in hindi) के साथ-साथ विस्तृत रूप में भी यानी 200 व 500 शब्दों में मेरे प्रिय शिक्षक पर निबंध (My Favourite Teacher Essay in Hindi) मिल जाएगा।

मेरे प्रिय शिक्षक पर 100 शब्दों का निबंध (100 Word Essay On My Favourite Teacher)

सरिता कौर मेरी प्रिय शिक्षक(My Favourite Teacher Essay in Hindi) हैं। वह छठी कक्षा को सामाजिक विज्ञान पढ़ाती हैं। वह बहुत ही पेशेवर और योग्य शिक्षिका हैं। वह हमेशा मेरी सभी शंकाओं के समाधान में मेरी मदद करती हैं, और यदि मैं कभी उनसे एक से अधिक बार कोई शंका पूछूं, तो भी वह कभी गुस्सा नहीं होती। वह बहुत स्नेहशील और मिलनसार हैं, और इसलिए मेरे कई सहपाठी भी उन्हें अपनी पसंदीदा शिक्षिका मानते हैं।

मैं वास्तव में उनकी कक्षा का आनंद लेता हूं, और वह हमारी कक्षा के प्रत्येक छात्र पर ध्यान देती है। वह बहुत ही संवादात्मक और रचनात्मक तरीके से पढ़ाती हैं। उसकी कक्षाएं बहुत दिलचस्प हैं, और वह उन्हें कभी उबाऊ नहीं बनाती, और इसलिए वह मेरी प्रिय शिक्षिका(My Favourite Teacher Essay) है।

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मेरे प्रिय शिक्षक पर 200 शब्दों का निबंध (200 Word Essay On My Favourite Teacher)

स्कूल हो या कॉलेज लाइफ में हर किसी का कोई न कोई प्रिय शिक्षक (My Favourite Teacher Essay) होता है। एक शिक्षक जिसकी कक्षाओं में भाग लेने के लिए छात्र उत्सुक रहते हैं। वे बेसब्री से प्रतीक्षा करते हैं और उस एक विशेष शिक्षक की कक्षा कभी नहीं छोड़ते। अनीता शर्मा मेरे लिए वह शिक्षिका हैं। वह मेरी प्रिय शिक्षिका (My Favourite Teacher) हैं। वह हमें इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र तथा नागरिक शास्त्र पढ़ाती हैं।

अन्य सेक्शन के मेरे अधिकांश सहपाठियों ने शिकायत की कि ये विषय कितने उबाऊ विषय थे। लेकिन वह अपने शिक्षण के अनूठे तरीके का उपयोग करके इन विषयों को आकर्षक बनाती हैं। वह थ्योरी पढ़ाने के लिए कहानियों और चित्रों का उपयोग करती है। उनकी कक्षाएं आनंददायक और आकर्षक होती हैं। वह अपनी कक्षा में पहली बेंच से लेकर आखिरी बेंच तक सब पर नज़र रखती है।

वह उन शिक्षकों में से एक हैं जो जब भी हम संदेह में फंसते हैं तो हमारा मार्गदर्शन करती हैं। उन्होंनें एक सोशल मीडिया ग्रुप भी बनाया है ताकि हम उनसे संपर्क कर सकें खासकर जब हमें कोई संदेह हो। जब भी मुझे सामाजिक विज्ञान में कुछ भी समझ में नहीं आता है, तो मैं उनसे ग्रुप में पूछता हूं, और वह तुरंत जवाब देती है, मेरी शंकाओं को मिनटों में हल करती है। वह उन छात्रों के साथ हमेशा सौम्य और शांत रहती हैं जो मूलभूत सिद्धांतों को नहीं समझते हैं। वह विभिन्न तकनीकों का उपयोग करके उसे समझाने की कोशिश करती है, लेकिन उनकी भाषा में कभी भी थोड़ी सी भी हताशा या गुस्सा नहीं होता है। वह शायद ही कभी किसी छात्र को डाँटती है, और उन्होंने कभी किसी को नहीं मारा। इन सब वजहों ने वह मेरी शिक्षक बन गई।

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मेरे प्रिय शिक्षक पर 500 शब्दों का निबंध (500 Word Essay On My Favourite Teacher)

मैं अपनी कक्षा में कभी भी पढ़ाई मे अच्छा छात्र नहीं था, मैं अन्य विषयों से प्यार करता था, लेकिन गणित हमेशा मेरा कमजोर विषय रहा। लेकिन यह सब नौवीं कक्षा में बदल गया जब अनिरुद्ध कुमार सर हमारे गणित के शिक्षक बन गए। अपनी पहली कक्षा में ही, उन्होंने धीरे और बहुत ही शांत तरीके से अपना परिचय दिया और प्रत्येक छात्र के पास जाकर उनकी हॉबी और पसंदीदा विषयों के बारे में पूछा। जब उन्होंने मुझसे पूछा, तो मैंने अचानक कहा, "मुझे गणित पसंद नहीं है और इतिहास मेरा पसंदीदा विषय है।"

इस बात से मेरी कक्षा पूरी तरह से स्तब्ध हो गई। मुझे डर था कि वह मेरे उत्तर पर गलत प्रतिक्रिया देंगे, लेकिन वह मुस्कुरायें और कहा, "हम इस साल के अंत तक इसे बदल देंगे।"

अब मैं 12वीं कक्षा में हूँ, और उन्होंनें वास्तव में मेरा पसंदीदा विषय बदल दिया। उनके ही कारण मुझे गणित पसंद है। वह मेरे प्रिय शिक्षक हैं और हमेशा रहेंगे। उन्होंने अपने छात्रों को इस तरह से पढ़ाया है, जैसा किसी अन्य शिक्षक ने नहीं किया है। इतना ही नहीं, बल्कि उन्होंने कभी भी किसी भी गलत काम को करने के लिए किसी को डांटा नहीं। इसके अलावा, वह हमेशा बहुत धैर्यवान और स्नेहशील रहे। मेरे सहित कक्षा के सबसे कमजोर छात्र भी धीरे-धीरे उसकी वजह से परीक्षा में सुधार कर रहे थे।

पढ़ाने का तरीका : उन्होंने हमें कठिन गणित के फॉर्मूले सीखने के लिए मज़ेदार और आकर्षक राइमिंग ट्रिक्स का इस्तेमाल किया। उनकी उपस्थिति में हमें कभी कोई परेशानी या भय महसूस नहीं हुआ; उन्होंने अकेले ही क्लास को एक खुशमिजाज और मजेदार जगह में बदल दिया। मेरे जीवन में ऐसे दिन आ गए थे जब मैं रविवार को सोमवार की प्रतीक्षा करता था, ताकि गणित की कक्षा ले सकूँ। जब भी मैं भ्रमित होता या किसी समस्या से परेशान होता - चाहे वे गणित का प्रश्न हो या अपने करियर को चुनने की समस्या, मैं हमेशा उनके पास जाता, और उन्होंने मेरी सभी समस्याओं को तुरंत हल कर दिया। यहां तक कि मेरे सहपाठी भी उनकी मदद लेते थे और प्यार से उन्हें काउंसलर सर कहते थे।

शिक्षक दिवस पर, उन्होंने सर्वश्रेष्ठ शिक्षक का पुरस्कार भी जीता। उन्हें वोट के माध्यम से चुना गया था। मुझे उस दिन एहसास हुआ कि अनिरुद्ध सर बहुत छात्रो के प्रिय शिक्षक(My Favourite Teacher) हैं। मुझे उनके लिए बहुत गर्व और खुशी महसूस हुई।

छात्रों के लिए प्रेरणा : वे कई सामाजिक गतिविधियों में भी शामिल रहते है। वह शाम को गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाते थे। वह कई एनजीओ से जुड़े हुए थे और सप्ताहांत में झुग्गी-झोपड़ियों में वंचित बच्चों को पढ़ाने जाते थे। मुझे याद है एक बार वह हमारी पूरी क्लास को स्लम एरिया में ले गए थे। मैं विस्मय से भर गया जब मैंने उन्हे वहाँ बच्चों को उसी जोश के साथ पढ़ाते हुए देखा जैसे वह हमें स्कूल में पढ़ाते थे। यही वह क्षण था जब वह मेरे प्रिय शिक्षक बन गए।

मेरे जीवन पर प्रभाव : मैंने अपनी कक्षा 9 में गणित में सर्वाधिक अंक प्राप्त किए। उन्होंने मुझमें गणित पढ़ने के लिए रुचि उत्पन्न की। उन्होंने नीरस और उबाऊ विषय को ऐसी चीज में बदल दिया जो मुझे सिर्फ मनोरंजन के लिए करना पसंद है। मैंने अपनी कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा में भी पूर्ण अंक प्राप्त किए। मैंने उनसे फोन पर बात की और उन्हें धन्यवाद दिया। इतने जुनून के साथ पढ़ाने के लिए मेरे भीतर का छात्र हमेशा उनका आभारी रहेगा। मैं आज जो कुछ भी हूं, उसे बनाने में उनका बहुत बड़ा योगदान है।

कॉलेज के दिनों में विभाग की विभागाध्यक्ष दविंदर कौर उप्पल मैम मेरी प्रिय शिक्षक रहीं। मैम से मेरी पहली बातचीत विश्वविद्यालय में एडमिशन से पहले इंटरव्यू के दौरान हुई। उस इंटरव्यू में लगभग 20 मिनट तक पैनल के लोगों के साथ उन्होंने मुझसे बात की थी। सबसे पहले सहज किया था कि यह कोई इंटरव्यू नहीं है यह एक बातचीत है। एक बार मुझे फीस जमा करने में देरी हो गई। उन्होंने बुला कर मुझसे वजह पूछा और वजह जानने के बाद फीस में छूट दिलाई और बाद में स्कॉलरशिप का फॉर्म भरवा कर छात्रवृत्ति भी दिलवाया। ग्रामीण पृष्ठभूमि के स्टूडेंट्स का हमेशा समर्थन किया। छात्राओं को हमेशा आगे बढ़ाने की कोशिश करतीं। खुद क्लास में आने से पहले पूरे नोट्स बनाकर आती थी और पॉइंट वाइज पढ़ाती थी और स्टूडेंट्स अच्छे से समझ पाते थे। वह एक अनुशासन प्रिय महिला थी और सख्त प्रशासक भी।

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मेरे प्रिय शिक्षक पर निबंध (My Favourite Teacher Essay in Hindi)

विद्यार्थियों से कक्षा में मेरे प्रिय शिक्षक पर निबंध लिखने काे कहा जाता है। आप अपने शिक्षक की विशेषता बता सकते हैं। उनके बारे में बता कर निबंध की शुरुआत कर सकते हैं। यहां एक नमूना निबंध दिया गया है जिससे आपको निबंध लिखने में मदद मिलेगी।

सारण जिले के जनता बाजार के शिक्षक कामेश्वर राय करीब चार दशक तक कोचिंग और स्कूल के माध्यम से छात्र-छात्राओं से जुड़े रहे। आसपास के करीब 12 पंचायत के बच्चे उनके यहां पढ़ने आते।

उनकी खासियत थी समय पर सिलेबस पूरा करते थे। कई बार रिवीजन करा देते थे। उन्हीं चीजों को पढ़ाते थे जो परीक्षा में आना हो। जो जानना जरूरी हो। वे इधर-उधर की बातों में विद्यार्थियों का समय जाया नहीं करते थे। समय के पाबंद रहे। यदि क्लास सुबह 5:00 बजे से शुरू होनी हो तो ठीक 5:00 बजे शुरू हो जाती थी। उसके पहले वे नहाकर पूजाकर तैयार रहते। चाय पान के हमेशा शौकीन रहे।

मुझे याद है 1998 में बिहार बोर्ड की परीक्षा में जिस बैच में हम लोग थे, उसके 1 साल पहले बहुत कड़ाई से परीक्षा हुई थी और बहुत कम बच्चे पास हुए थे। जाहिर है कि उसके अगले साल वाले बच्चों ने अधिक मेहनत की। हम लोग भी उसी में शामिल थे। उनके कोचिंग में उस साल पहली बार 13 बच्चों का फर्स्ट डिवीजन रिजल्ट आया था और मास्टर साहब ने तय किया था कि रिजल्ट अच्छा रहा तो बाबा धाम जाएंगे। सचमुच रिजल्ट अच्छा रहा और वह उस साल से बाबा धाम जाने लगे।

वे अपने संस्थान में सरस्वती पूजा बड़े धूमधाम से करते थे। बड़ा पंडाल, बड़ी सी मूर्ति सजती और सभी बच्चे खूब उत्साह से भाग लेते थे। चार या पांच दिवसीय आयोजन में रंगारंग कार्यक्रम होता था और जिस दौर में भारी भीड़ जुटती थी, उस दौर में लोगों को पूजा का इंतजार रहता था। हजारों लोग देर रात तक दूर-दूर के गांव से आकर रंगारंग कार्यक्रम देखते थे।

90 के दशक में वे मैदान पर उतने ही एक्टिव थे, जितना पढ़ाने में। हर दिन शाम को बच्चों के साथ फुटबॉल मैच खेलने जाते। कभी वॉलीबॉल में भी वे उतनी ही शिद्दत से हिस्सा लेते तो कभी क्रिकेट में भी।

तब के दौर में हर साल ठंड के दिनों में भव्य फुटबॉल मैच का आयोजन हुआ करता था। उसमें अलग-अलग गांव, शहर की टीमें हिस्सा लेती थी। जनता बाजार हाई स्कूल मैदान में होने वाले फुटबॉल मैच में 10,000 से अधिक लोगों की भीड़ जुटती थी। भुजा का, मूंगफली का ठेला लगा रहता, पापड़ वाले घूम घूम के दर्शकों में पापड़ बेचा करते थे। उसमें खिलाड़ियों जैसी फिटनेस वाले मास्टर साहब बिजली की फुर्ती से खिलाड़ियों से अधिक तेज मैदान में रेफरी की भूमिका में दौड़ लगाते थे। और उनका साथ देते थे जापानी मास्टर।

वह अपने कैरियर के उत्तरार्ध में सरकारी स्कूल में शिक्षक बने। प्रधानाचार्य पद से रिटायर हुए। सामाजिक कार्यों में भी उनकी एक अलग प्रतिष्ठा रही। हर आयोजन में शरीक होते। थाना से लेकर नेताओं तक में उनकी अच्छी पैठ हमेशा रही। लोकसभा चुनाव में शुरुआती दौर में वे अपने प्रत्याशियों के समर्थन में खूब एक्टिव रहते। बाद में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जिस भी प्रत्याशी से उनका नजदीकी रिश्ता रहा वे उससे बहुत करीबी रूप से जुड़े रहे।

बच्चों की मदद करने में भी मास्टर साहब आगे रहते थे। मुझे आज याद आ रहा है कि मैं बाइक चलाना सीखना चाहता था। बाइक मेरे पास नहीं थी। उनके पास एक राजदूत था। उनसे बस यही कहा था कि सर बाइक सीखना चाहता हूं। वे तुरंत तैयार हुए। बोले- चलो सिखाते हैं और वह खुद ले कर चल दिए। मैं उन्हीं के बाइक पर बाइक चलाना सीखा।

मैंने कभी भी उनको बच्चों से ट्यूशन फी के लिए तगादा करते हुए नहीं देखा। जो जितना दे दे, रख लेते थे। क्षेत्र के हजारों विद्यार्थियों को उन्होंने काबिल बनाया। आजीवन जनता बाजार के एक कुटिया में उन्होंने जीवन गुजार दिया।

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