लोकमान्य तिलक पर भाषण (Speech on Lokmanya Tilak in Hindi) - 10 लाइन, लघु और लंबा भाषण देखें

लोकमान्य तिलक पर भाषण (Speech on Lokmanya Tilak in Hindi) - 10 लाइन, लघु और लंबा भाषण देखें

Edited By Nitin | Updated on Oct 03, 2024 02:59 PM IST
Switch toEnglishEnglish Icon HindiHindi Icon

लोकमान्य तिलक, जिन्हें सामान्यतः बाल गंगाधर तिलक के नाम से जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के महत्वपूर्ण नेताओं में से एक थे। उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष का जनक कहा गया और उन्हें 'लोकमान्य' की उपाधि दी गई जिसका अर्थ है 'लोगों द्वारा अपने नेता के रूप में स्वीकार किया गया'। वह स्वराज के प्रथम और प्रबल समर्थकों में से एक थे। वह अपने इस क्वोट के लिए प्रसिद्ध हैं कि "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा!" इसके अलावा, बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय सहित कई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नेताओं के साथ उनका घनिष्ठ संबंध था।

लोकमान्य तिलक पर भाषण (Speech on Lokmanya Tilak in Hindi) - 10 लाइन, लघु और लंबा भाषण देखें
लोकमान्य तिलक पर भाषण (Speech on Lokmanya Tilak in Hindi) - 10 लाइन, लघु और लंबा भाषण देखें

लोकमान्य तिलक पर लघु भाषण (Short Speech on Lokmanya Tilak)

लोकमान्य तिलक का शुरुआती जीवन (Lokmanya Tilak Early Life)

केशव गंगाधर तिलक के रूप में जन्मे लोकमान्य तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। 16 वर्ष की कम आयु में ही उनका विवाह हुआ; उन्होंने पुणे के डेक्कन कॉलेज से गणित में कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की। स्नातक करने के बाद वह पुणे के एक निजी स्कूल में गणित के शिक्षक रहे और बाद में पत्रकार बन गए। वह एक अंग्रेजी स्कूल के सह-संस्थापक थे, जिसके परिणामस्वरूप डेक्कन एजुकेशनल सोसाइटी तथा फर्ग्यूसन कॉलेज की स्थापना की, जहां उन्होंने गणित का शिक्षण किया। 1890 में तिलक राजनीतिक कार्य के लिए चले गये और भारत की स्वतंत्रता के लिए एक जन आंदोलन शुरू किया।

ये भी पढ़े :

लोकमान्य तिलक राजनीतिक जीवन (Lokmanya Tilak Political life)

लोकमान्य तिलक को "भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष का जनक" कहा जाता है। तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए तथा उन्हें उस समय के प्रमुख क्रांतिकारी नेताओं में से एक माना जाता था। ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा उन पर तीन बार राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया था। तिलक ने कलकत्ता के प्रसिद्ध मुख्य प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट डगलस किंग्सफोर्ड की हत्या का प्रयास करने वाले क्रांतिकारियों का बचाव करने के कारण बर्मा के मांडले में छह वर्ष की जेल की सजा काटी। उन्होंने अखिल भारतीय होम रूल लीग की भी स्थापना की, जिसका ध्यान स्वशासन पर था, जहां तिलक ने आंदोलन में शामिल होने के लिए स्थानीय लोगों का समर्थन प्राप्त करने के लिए गांव-गांव की यात्रा की। शुरुआत में लीग के सदस्यों की संख्या 1,400 थी जो बढ़कर लगभग 32,000 हुई।

लोकमान्य तिलक मृत्यु और उससे आगे (Lokmanya Tilak Death and beyond)

लोकमान्य तिलक की मृत्यु 1 अगस्त 1920 को मुम्बई में हुई। उन्होंने सरदार गृह के अतिथि कक्ष में अंतिम सांस ली, जहां उन्हें हृदयाघात हुआ। उनके अंतिम संस्कार में 2 लाख से अधिक लोग शामिल हुए, जो भारतीय इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा था। अंतिम संस्कार में इतनी भीड़ उमड़ी कि शव का अंतिम संस्कार श्मशान घाट के बजाय चौपाटी पर किया गया। अपनी मृत्युशय्या पर उन्होंने कहा, "जब तक स्वराज प्राप्त नहीं हो जाता, भारत समृद्ध नहीं होगा। यह हमारे अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है।" श्रद्धांजलि देते हुए जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें "भारतीय क्रांति का जनक" कहा।

लोकमान्य तिलक पर लंबा भाषण (Long Speech on Lokmanya Tilak)

लोकमान्य तिलक पृष्ठभूमि (Lokmanya Tilak Background)

लोकमान्य तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को आधुनिक महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में एक ब्राह्मण, मराठी परिवार में हुआ था। उनका पैतृक गांव चिखली था। उनके पिता गंगाधर तिलक एक स्कूल शिक्षक और संस्कृत के विद्वान थे, जिनकी मृत्यु तब हुई जब तिलक 16 वर्ष के थे। अपने पिता की मृत्यु से कुछ महीने पहले उनका विवाह तापीबाई से हुआ था। उन्होंने पुणे के डेक्कन कॉलेज से गणित में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की। स्नातक करने के बाद वे पुणे के एक निजी स्कूल में गणित के शिक्षक बन गए। बाद में वे पत्रकार बन गए और सार्वजनिक मामलों में शामिल हो गए।

1880 में, अपने कुछ कॉलेज मित्रों के साथ मिलकर उन्होंने माध्यमिक शिक्षा के लिए न्यू इंग्लिश स्कूल की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारतीय युवाओं के लिए शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना था। स्कूल की सफलता के परिणामस्वरूप डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी और फर्ग्यूसन कॉलेज की स्थापना हुई, जहां वे शिक्षक रहे।

लोकमान्य तिलक सामाजिक और राजनीतिक योगदान (Lokmanya Tilak Social and Political contribution)

तिलक का राजनीतिक जीवन काफी लम्बा था और उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से भारतीय स्वायत्तता के लिए आंदोलन किया। गांधीजी से पहले तिलक सबसे अधिक प्रसिद्ध राजनीतिक नेता थे। उन्हें एक कट्टर राष्ट्रवादी लेकिन एक सामाजिक रूढ़िवादी माना जाता था। उन्हें कई बार जेल भेजा गया, जिसमें बर्मा के मांडले में लम्बा समय बिताना भी शामिल है। उनके राजनीतिक जीवन में उन्हें "भारतीय अशांति का जनक" कहा जाता था। तिलक ने स्वदेशी आंदोलन और बहिष्कार आंदोलन को प्रोत्साहित किया। उन्होंने अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना की जो भारत में सक्रिय आंदोलनों में से एक बन गया।

तिलक ने जीवन भर भारतीय जनता को व्यापक राष्ट्रीय आंदोलन के लिए एकजुट करने का प्रयास किया। तिलक ने मराठी में 'केसरी' और अंग्रेजी में 'मराठा' नामक दो साप्ताहिक पत्र शुरू किये, जिससे उन्हें 'भारत के जागृतकर्ता' के रूप में पहचान मिली। उन्होंने गणेश पूजा जैसी घरेलू पूजा को एक भव्य सार्वजनिक आयोजन में बदल दिया, जिसे सार्वजनिक गणेशोत्सव के नाम से जाना गया।

लोकमान्य तिलक के लेख | 1903 में तिलक ने 'द आर्कटिक होम इन द वेदाज़' नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि वेदों की रचना केवल आर्कटिक में ही हुई होगी। 'द ओरायन' में उन्होंने विभिन्न नक्षत्रों की स्थिति का उपयोग करके वेदों के समय की गणना की।

लोकमान्य तिलक की मृत्यु | तिलक को हृदयाघात हुआ और उन्होंने सरदार गृह में अंतिम सांस ली। उनके अंतिम संस्कार में 2 लाख से अधिक लोग शामिल हुए। लोकमान्य तिलक का अंतिम संस्कार पद्मासन में किया गया, जो कि केवल संतों को ही दिया जाने वाला सम्मान है।

लोकमान्य तिलक परंपरा | तिलक स्मारक प्रतिमा गिरगांव चौपाटी के पास बनाई गई हैं। पुणे में एक थिएटर ऑडिटोरियम तिलक स्मारक रंगा उन्हें समर्पित है। 2007 में भारत सरकार ने तिलक की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में एक सिक्का जारी किया। उनके जीवन पर कई भारतीय फिल्में बनाई गई हैं जिनमें वृत्तचित्र फिल्में 'लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक' और 'महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक - स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार' शामिल हैं।

ये भी पढ़ें:

लोकमान्य तिलक पर 10 लाइन (10 Lines on Lokmanya Tilak)

  1. लोकमान्य तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में हुआ था।

  2. वे मध्यम वर्गीय हिंदू ब्राह्मण परिवार में जन्मे, उन्होंने पुणे के डेक्कन कॉलेज से गणित में स्नातक की पढ़ाई पूरी की।

  3. अपने शुरुआती दिनों में वह एक निजी स्कूल में शिक्षक रहे और बाद में पत्रकार बन गए।

  4. उन्होंने धार्मिक और सांस्कृतिक पुनरुत्थान पर बल देते हुए स्वतंत्रता की दिशा में एक जन आंदोलन शुरू किया।

  5. तिलक 1890 में कांग्रेस में शामिल हुए और ब्रिटिश शासन के विरुद्ध उनका रुख अधिक उग्र और आक्रामक था।

  6. वह बहिष्कार और स्वदेशी आंदोलन के समर्थक थे।

  7. लोकमान्य तिलक को "हत्या के लिए उकसाने" के आरोप में 18 महीने की कैद हुई थी।

  8. एक राष्ट्रवादी उग्रवादी नेता होने के बावजूद लोकमान्य तिलक के सामाजिक विचार काफी रूढ़िवादी थे।

  9. उन्होंने गणेश पूजा और सार्वजनिक गणेशोत्सव को महाराष्ट्र के सबसे बड़े त्योहारों में से एक के रूप में लोकप्रिय बनाया।

  10. बाल गंगाधर तिलक ने लोगों को अपनी संस्कृति और विरासत पर गर्व करने के लिए प्रोत्साहित किया तथा वे समाज के ज़बरदस्त आधुनिकीकरण के खिलाफ थे।

ये भी देखें :

महत्वपूर्ण प्रश्न :
तिलक को लोकमान्य क्यों कहा जाता है?

बाल गंगाधर तिलक ने एनी बेसेंट की मदद से अप्रैल 1916 में होम रुल लीग की स्थापना की। बाल गंगाधर तिलक को होम रूल आन्दोलन के दौरान काफी प्रसिद्धि मिली, जिस वजह से उन्हें “लोकमान्य” की उपाधि मिली। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य भारत में स्वराज स्थापित करना था।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का नारा क्या है?

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 1893 ई. में गणपति महोत्सव और 1895 ई. में शिवाजी महोत्सव का भी आयोजन किया। तिलक ने कहा: 'स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा। यह उनका प्रसिद्ध नारा है। उन्हें लोकमान्य की उपाधि से नवाजा गया। वह 'लाल-बाल-पाल' समूह की तिकड़ी का हिस्सा थे।

तिलक का पूरा नाम क्या था?

तिलक का पूरा नाम बाल गंगाधर तिलक था। उनका जन्म 23 जुलाई, 1856, रत्नागिरी [अब महाराष्ट्र राज्य में] हुआ। उनका निधन 1 अगस्त, 1920, बॉम्बे [अब मुंबई]) में हुआ। वे एक विद्वान, गणितज्ञ, दार्शनिक और उत्साही राष्ट्रवादी थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन के प्रति अपनी स्वयं की चुनौती को राष्ट्रीय आंदोलन में बदलकर भारत की स्वतंत्रता की नींव रखने में मदद की।

Get answers from students and experts
Back to top