भ्रष्टाचार पर निबंध (Corruption Essay in Hindi) : हम आए दिन समाचार माध्यमों में रिश्वत के आरोप में सरकारी बाबू की गिफ्तारी की खबरें पढ़ते-देखते-सुनते रहते हैं। रिश्वत के आरोप में सरकारी एजेंसियों की कार्रवाई दरअसल भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की कवायद होती है। एक बुरे आचरण आचरण से भ्रष्टाचार की शुरुआत होती है जो कि व्यक्ति को निरन्तर इस ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। भ्रष्टाचार से आशय अनैतिक, अनुचित या भ्रष्ट आचरण से है। नीति-नियम विरुद्ध कार्य-व्यवहार करना भ्रष्टाचार (corruption) कहलाता है। अनैतिक रूप से कमाया हुआ धन, शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक शोषण, ये सभी भ्रष्टाचार को प्रदर्शित करते हैं। हमारे देश भारत में पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों को देखें तो कहा जा सकता है कि भ्रष्टाचार हमारे देश की लाइलाज समस्या हो गई है। सामाजिक और आर्थिक असमानताएं भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकती हैं, क्योंकि धन और शक्ति वाले व्यक्ति अपने प्रभाव का उपयोग सुविधाओं, सेवाओं को नियम विरुद्ध जल्द प्राप्त करने तथा बिना किसी कारण के भ्रष्ट आचरण में संलग्न होने के लिए कर सकते हैं।
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‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल’ द्वारा जारी ‘भ्रष्टाचार बोध सूचकांक’ 2023 (CPI) की मानें तो पिछले एक दशक में अधिकांश देशों में भ्रष्टाचार पर नियंत्रण की स्थिति या तो काफी हद तक स्थिर या खराब रही है। भारत ने भ्रष्टाचार बोध सूचकांक 2023 में 40 अंक प्राप्त किए। भ्रष्टाचार सत्ता या बड़े प्रशासनिक पदों पर बैठे लोगों द्वारा किया गया अशिष्ट और असंवैधानिक व्यवहार है। इसकी शुरुआत किसी निजी लाभ के लिए सार्वजनिक पद का उपयोग करने की प्रवृत्ति से होती है। भारत जैसे देश में पिछले कुछ समय से आ रही खबरी को देखें तो कह सकते हैं कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भ्रष्टाचार कई लोगों के लिए आदत बन गया है। यह इतनी गहराई तक व्याप्त है कि भ्रष्टाचार को अब एक सामाजिक मानदंड माना जाता है। इसलिए भ्रष्टाचार का तात्पर्य नैतिकता की विफलता से है।
भ्रष्टाचार गरीबों और कमजोर लोगों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाता है। भ्रष्टाचार करने वाला व्यक्ति अपने निजी लाभ के लिए देश की संपत्ति का शोषण करता है। बेईमानी या धोखाधड़ी वाला व्यवहार भ्रष्टाचार के रूप में सामने आता है। भ्रष्टाचार के कई रूप हैं, जिनमें रिश्वतखोरी, गबन, भाई-भतीजावाद, सत्ता का दुरुपयोग और धोखाधड़ी शामिल है। वर्तमान में लोकसभा चुनावों के दौरान इलेक्टोरल बॉन्ड, चंदा दो धंधा लो जैसे शब्द राजनैतिक नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप के तौर पर जनता के बीच काफी चर्चा में रहे, जो भ्रष्टाचार को ही रेखांकित कर हैं। हमारे देश भारत के विकास यात्रा की राह में भ्रष्टाचार एक बड़ा अवरोध है। भ्रष्टाचार से मुक्ति के दावों के बीच देश में कोई न कोई ऐसी घटना घटित हो जाती है जिससे सीधे यह प्रतीत होता है कि भ्रष्टाचार पर काबू पाना किसी के वश में नहीं है। आम जनता भी जब अपेक्षित तौर-तरीके से काम न करे तो वह भी भ्रष्टाचार की ही श्रेणी में आएगा। यहां भारत में भ्रष्टाचार (corruption essay in hindi) पर कुछ निबंध सैंपल दिए गए हैं।
भ्रष्टाचार पर निबंध (Corruption Essay in Hindi) केंद्रित इस पेज पर लिखे लेख की मदद से छात्र-छात्राओं को से भ्रष्टाचार पर निबंध (bhrashtachar per nibandh) और भाषण के लिए उपयोगी जानकारी मिलेगी।
भ्रष्टाचार एक आम समस्या है जो हमारे देश में दशकों से बीमारी की तरह जड़ जमा चुकी है। यह समाज के सभी स्तरों को प्रभावित करता है, सबसे गरीब से लेकर सबसे अमीर तक। पहले जानें- भ्रष्टाचार क्या है? भ्रष्टाचार एक ऐसा अनैतिक आचरण है, जिसमें व्यक्ति खुद की छोटी इच्छाओं की पूर्ति हेतु देश को संकट में डालने में भी देर नहीं करता है। देश में प्राकृतिक संसाधन, मानव बल के साथ भौतिक संसाधन होने के बाद भी देश के विकास में भ्रष्टाचार दीमक की तरह लग गया है। यह न सिर्फ देश को गरीब और लाचार बनाता जा रहा है, बल्कि कई नए तरह के संकट जैसे समाज में वैमन्य, असंवेदनशीलता और असहयोग की भावना भी सामने ला रहा है। रिश्वत की लेन-देन, गबन, घोटाला, चुनाव में धांधली, भाई-भतीजावाद, नागरिकों द्वारा टैक्स चोरी, घूसखोरी, राशन में मिलावट आदि भ्रष्टाचार के सामान्य उदाहरण हैं।
भ्रष्टाचार के परिणामस्वरूप अयोग्य और अपात्र को लाभ पहुंचता है। इससे सार्वजनिक संस्थानों में विश्वास की हानि होती है, कानून का शासन कमजोर होता है और आर्थिक विकास में बाधा आती है। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के विभिन्न प्रयासों के बावजूद, यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है। भ्रष्टाचार के मुद्दे से निपटने के लिए निरंतर सतर्कता और मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।
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भ्रष्टाचार एक व्यापक समस्या है जो कई दशकों से चिंता का विषय बनी हुई है। यह एक ऐसा ख़तरा है जो समाज के सभी स्तरों, सबसे ग़रीबों से लेकर सबसे अमीर लोगों तक को परेशान करता है। लालच और असंतुष्टि, देश का लचीला कानून भी भ्रष्टाचार की वजह है। भारत में भ्रष्टाचार विभिन्न रूपों में होता है, जैसे रिश्वतखोरी, गबन, भाई-भतीजावाद और सार्वजनिक संसाधनों का दुरुपयोग। भारत में भ्रष्टाचार का मूल कारण पारदर्शिता, जवाबदेही की कमी और कमजोर कानूनी प्रणाली है। भारत देश में वैसे तो बहुत भ्रष्टाचार हुए हैं हर रोज कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में आम जनता का इनसे सामना होता रहता है।
वर्ष 1985 में भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सूखा प्रभावित ओडिशा के कालाहांडी क्षेत्र के दौरे में कहा था कि देश में बहुत भ्रष्टाचार है, सरकार द्वारा खर्च किए जाने वाले 1 रुपये में से 15 पैसे ही जनता तक पहुंच पाते हैं। भारत में भ्रष्टाचार की समस्या पर तत्कालीन प्रधानमंत्री के इस कथन से समस्या की गंभीरता का पता चलता है।
आजादी के बाद सबसे पहले जीप खरीदी घोटाला (1948) देश में सामने आया था। आजादी के बाद भारत सरकार ने एक लंदन की कंपनी से 2000 जीपों को सौदा किया। सौदा 80 लाख रुपये का था। लेकिन केवल 155 जीप ही मिल पाई। इस घोटाले में ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त का हाथ होने की बात सामने आई। लेकिन 1955 में केस बंद हो गया और वसूली 1 रुपए की भी नहीं हो पाई।
बोफोर्स घोटाला- 1987 में एक स्वीडन की कंपनी बोफोर्स एबी से रिश्वत लेने के मामले में राजीव गांधी समेत कई बेड़ नेता फंसे। इसमें आरोप लगा की भारतीय 155 मिमी. के फील्ड हॉवीत्जर के बोली में नेताओं ने करीब 64 करोड़ रुपये का घपला किया।
1996 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और अन्य नेताओं ने राज्य के पशुपालन विभाग को लेकर धोखाबाजी से लिए गए 950 करोड़ रुपये कथित रूप से निगल लिए।
परिणाम : भारत में भ्रष्टाचार का देश के सामाजिक और आर्थिक विकास पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप संसाधनों का गलत आवंटन, खराब प्रशासन और लोगों को आवश्यक सेवाओं की कमी आती है। भ्रष्टाचार ने लोकतंत्र और कानून के शासन को भी कमजोर कर दिया है, राजनीतिक दल और नेता, सत्ता और नियंत्रण बनाए रखने के साधन के रूप में भ्रष्टाचार का उपयोग कर रहे हैं।
उपाय : भारत सरकार ने भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कई उपाय किए हैं, जैसे भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसियों की स्थापना करना, कानून और नियम बनाना, सार्वजनिक संस्थानों में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना। हालाँकि, भारत में भ्रष्टाचार एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है, जिससे निपटने के लिए निरंतर प्रयासों और राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।
भ्रष्टाचार में भाग लेने से इनकार करने, भ्रष्टाचार की रिपोर्ट करने और अपने नेताओं से जवाबदेही की मांग करके भ्रष्टाचार से लड़ने में नागरिक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। भारत में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और निष्पक्ष समाज के निर्माण के लिए सरकार और नागरिकों सहित सभी हितधारकों के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है।
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भारत में भ्रष्टाचार दशकों से एक बड़ी समस्या रही है, जिसने समाज के सबसे गरीब से लेकर सबसे अमीर तक सभी स्तरों को प्रभावित किया है। भारत में भ्रष्टाचार कई रूपों में होता है, जैसे रिश्वतखोरी, गबन, भाई-भतीजावाद और सार्वजनिक संसाधनों का दुरुपयोग। यह देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करता है, कानून के शासन को कमजोर करता है और सामाजिक और आर्थिक विकास पर गंभीर परिणाम डालता है। व्यक्ति लोभ, असंतुष्टि, आदत और मनसा जैसे विकारों के वजह से भ्रष्टाचार के मौके का फायदा उठा सकता है।
पारदर्शिता का अभाव : सार्वजनिक संस्थानों में पारदर्शिता के अभाव से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। जब सरकारी कामकाज में कोई पारदर्शिता नहीं होती है, तो अधिकारियों के लिए पहचान या सजा के डर के बिना भ्रष्ट आचरण में शामिल होना आसान होता है।
कमजोर कानूनी व्यवस्था : भारत में कमजोर कानूनी व्यवस्था भी भ्रष्टाचार में महत्वपूर्ण योगदान देती है। भ्रष्ट अधिकारी न्याय से बच जाते हैं और कठोर दंड की व्यवस्था न होने से भी भ्रष्ट मानसिकता बढ़ती है।
राजनीतिक प्रभाव : राजनीतिक प्रभाव भारत में भ्रष्टाचार का एक और महत्वपूर्ण कारण है। राजनेता अपनी शक्ति और प्रभाव का उपयोग अक्सर सार्वजनिक हित की कीमत पर स्वयं और अपने सहयोगियों को लाभ पहुंचाने के लिए करते हैं।
गरीबी और आर्थिक अवसरों की कमी : गरीबी और आर्थिक अवसरों की कमी एक ऐसा वातावरण बनाती है, जहाँ भ्रष्टाचार पनपता है। सत्ता में बैठे लोग अक्सर भ्रष्ट आचरण में शामिल होने के लिए कमज़ोर लोगों का शोषण करते हैं।
नौकरशाही/लालफीताशाही: लंबी और जटिल नौकरशाही प्रक्रियाएँ तथा अत्यधिक नियम व्यक्तियों एवं व्यवसायों को प्रक्रियाओं में तेज़ी लाने या बाधाओं को दूर करने के लिये भ्रष्ट आचरण में शामिल होने हेतु प्रेरित कर सकते हैं।
राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी : विभिन्न भ्रष्टाचार विरोधी उपायों के बावजूद, भ्रष्टाचार से निपटने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है। कानूनों और विनियमों को लागू करने की इच्छाशक्ति की कमी के कारण भ्रष्टाचार अक्सर अनियंत्रित हो जाता है।
कम वेतन और प्रोत्साहन: सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकारियों, विशेषकर निचले स्तर के पदों पर बैठे लोगों का कम वेतन उन्हें रिश्वतखोरी और भ्रष्ट आचरण के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है, क्योंकि वे भ्रष्टाचार को अपनी आय के पूरक के साधन के रूप में देखते हैं।
भारत का जटिल आर्थिक वातावरण, जिसमें विभिन्न लाइसेंस, परमिट और अनुमोदन शामिल हैं, भ्रष्टाचार के अवसर पैदा कर सकते हैं। व्यवसाय इस माहौल से निपटने के लिये रिश्वतखोरी का सहारा ले सकते हैं।
भारत में भ्रष्टाचार के मूल कारणों की चर्चा के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें संरचनात्मक सुधार, संस्थानों को मजबूत करना और भ्रष्टाचार के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव शामिल है। अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और निष्पक्ष समाज के निर्माण के लिए सरकार, नागरिक समाज और नागरिकों सहित सभी हितधारकों के ठोस प्रयास की आवश्यकता है।
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भारत में भ्रष्टाचार को कम करना एक जटिल और चुनौतीपूर्ण कार्य है जिसके लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। यहां कुछ कदम दिए गए हैं जो भारत में भ्रष्टाचार को कम करने के लिए उठाए जा सकते हैं।
संस्थाओं को मजबूत करना : न्यायपालिका, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और भ्रष्टाचार विरोधी निकायों जैसी संस्थाओं को मजबूत करने से भ्रष्टाचार को कम करने में मदद मिल सकती है। इन संस्थानों को अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से करने के लिए पर्याप्त संसाधन, प्रशिक्षण और स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिए।
सरकारी कामकाज में पारदर्शिता : सरकारी कामकाज में अधिक पारदर्शिता से भ्रष्टाचार को रोकने में मदद मिल सकती है। सरकारी अनुबंधों, बजट और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं के सार्वजनिक प्रकटीकरण जैसे उपाय भ्रष्टाचार के अवसरों को कम करने में मदद कर सकते हैं।
शिकायत निवारण तंत्र : नागरिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना और फीडबैक के लिए चैनल बनाना एक और तरीका है जो भ्रष्टाचार के उन्मूलन में मदद कर सकता है। यह निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में नागरिक भागीदारी को बढ़ावा देकर, व्हिसलब्लोअर संरक्षण कानून बनाकर और शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करके किया जा सकता है।
कानून का पालन : भ्रष्टाचार को कम करने के लिए कानूनों और विनियमों का कड़ाई से कार्यान्वयन महत्वपूर्ण है। इसके लिए भ्रष्ट अधिकारियों पर मुकदमा चलाने तथा यह सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है कि उन्हें उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जाए।
नैतिक नेतृत्व को बढ़ावा देना : नैतिक नेतृत्व को बढ़ावा देना सुनिश्चित करके भ्रष्टाचार को कम करने में मदद मिल सकती है कि सरकार के सभी स्तरों पर नेताओं का चयन उनकी ईमानदारी और नैतिक व्यवहार के ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर किया जाता है।
प्रौद्योगिकी का उपयोग : प्रौद्योगिकी के उपयोग से भ्रष्टाचार को कम करने में मदद मिल सकती है। उदाहरण के लिए, ई-गवर्नेंस सिस्टम, शिकायत दर्ज करने के लिए ऑनलाइन पोर्टल और डिजिटल भुगतान सिस्टम भ्रष्टाचार के अवसरों को कम कर सकते हैं। भ्रष्टाचार को रोकने का एक बेहतरीन तरीका कार्यस्थलों पर कैमरे लगाना हो सकता है। पकड़े जाने के डर से कई लोग भ्रष्टाचार में लिप्त होने से बचते हैं।
जागरूकता : भ्रष्टाचार के नकारात्मक प्रभावों के बारे में जनता को शिक्षित करना और नैतिक व्यवहार को बढ़ावा देना भ्रष्टाचार को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है। यह जागरूकता अभियानों, स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षा और सार्वजनिक सेवा घोषणाओं के माध्यम से किया जा सकता है।
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प्रस्तावना : भ्रष्टाचार दो शब्दों से मिलकर बना है— 'भ्रष्ट' और 'आचरण', जिसका अर्थ है ऐसा आचरण जो नैतिकता और कानून के विरुद्ध हो। जब कोई व्यक्ति अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए अपने पद और शक्ति का दुरुपयोग करता है, तो उसे भ्रष्टाचार कहा जाता है। आज के समय में यह एक वैश्विक समस्या बन चुका है जो समाज की जड़ों को खोखला कर रहा है।
भ्रष्टाचार के विभिन्न रूप : समाज में भ्रष्टाचार कई रूपों में व्याप्त है। सरकारी कार्यालयों में काम कराने के लिए रिश्वत देना, चुनावी प्रक्रिया में धन का अनुचित प्रयोग, मिलावटखोरी, और भाई-भतीजावाद इसके प्रमुख उदाहरण हैं। इसके अलावा, नियमों का उल्लंघन करके अनुचित लाभ प्राप्त करना भी भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है।
भ्रष्टाचार के कारण : भ्रष्टाचार के पनपने के पीछे कई मुख्य कारण हैं:
अत्यधिक लोभ: अधिक धन कमाने की लालसा व्यक्ति को गलत रास्ते पर ले जाती है।
नैतिक मूल्यों की कमी: आधुनिक युग में लोग नैतिकता और ईमानदारी को भूलकर भौतिक सुखों के पीछे भाग रहे हैं।
लचर कानून व्यवस्था: जब भ्रष्ट लोगों को समय पर और कड़ी सजा नहीं मिलती, तो उनके हौसले बुलंद हो जाते हैं।
गरीबी और बेरोजगारी: कभी-कभी मजबूरी में भी लोग छोटे स्तर के भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते हैं।
समाज पर प्रभाव : भ्रष्टाचार का सबसे बुरा प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था और आम जनता पर पड़ता है। यह विकास कार्यों की गति को धीमा कर देता है। सरकारी योजनाओं का लाभ पात्र व्यक्तियों तक नहीं पहुँच पाता क्योंकि बीच के लोग उसे हड़प लेते हैं। इससे समाज में अमीरी और गरीबी की खाई और अधिक चौड़ी हो जाती है और ईमानदार व्यक्ति को मानसिक प्रताड़ना सहनी पड़ती है।
निवारण के उपाय : भ्रष्टाचार को पूरी तरह मिटाना कठिन है, लेकिन उचित प्रयासों से इसे कम किया जा सकता है:
कठोर दंड प्रणाली: भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्तियों के खिलाफ त्वरित और कठोर कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए।
पारदर्शिता: सरकारी कार्यों में सूचना के अधिकार (RTI) और डिजिटल तकनीक का अधिक उपयोग होना चाहिए ताकि बिचौलियों की भूमिका खत्म हो सके।
नैतिक शिक्षा: बच्चों को शुरुआत से ही ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के संस्कार दिए जाने चाहिए।
जागरूकता: जनता को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा और रिश्वत देने की प्रथा को बंद करना होगा।
उपसंहार : भ्रष्टाचार राष्ट्र की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा है। यदि हम भारत को एक विकसित और समृद्ध राष्ट्र बनाना चाहते हैं, तो हमें भ्रष्टाचार रूपी दानव को जड़ से उखाड़ फेंकना होगा। यह केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह ईमानदारी का मार्ग अपनाए और भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाए।
करियर से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण लेख
भारत में भ्रष्टाचार एक गहरी समस्या रही है, लेकिन समय-समय पर इसके विरुद्ध बड़े जन-आंदोलन भी हुए हैं। हाल के वर्षों में सबसे प्रभावशाली आंदोलनों का विवरण इस प्रकार है:
1. 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' (2011-2012)
यह आधुनिक भारत का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन माना जाता है।
नेतृत्व: इसका नेतृत्व सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने किया था, जिनके साथ अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी और प्रशांत भूषण जैसे लोग शामिल थे।
मुख्य मांग: जन लोकपाल विधेयक पारित करना, जो एक स्वतंत्र संस्था के रूप में नेताओं और अधिकारियों की जांच कर सके।
परिणाम: इस आंदोलन के दबाव में सरकार ने लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 पारित किया। साथ ही, इसने भारतीय राजनीति में एक नई लहर पैदा की जिससे आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ।
2. नोटबंदी (Demotesitation - 2016)
यद्यपि यह सरकार द्वारा उठाया गया एक कदम था, लेकिन इसे "काले धन और भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध" के रूप में पेश किया गया।
उद्देश्य: जाली नोटों को समाप्त करना, भ्रष्टाचार के जरिए जमा किए गए नकद काले धन को बाहर निकालना और आतंकवाद की फंडिंग रोकना।
प्रभाव: इसने डिजिटल लेनदेन (Cashless Economy) को बढ़ावा दिया, जिससे सरकारी कार्यों में पारदर्शिता आई और बिचौलियों की भूमिका कम हुई।
3. भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकारी पहल (हाल के वर्ष)
आंदोलनों के अलावा, हाल के समय में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कई प्रशासनिक सुधार किए गए हैं:
प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT): सरकारी योजनाओं का पैसा सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में भेजने से भ्रष्टाचार में भारी कमी आई है।
डिजिटल इंडिया: लगभग सभी सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन करने से बाबूशाही और रिश्वतखोरी पर लगाम लगी है।
भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम (2018): बड़े बैंक घोटालों के बाद देश छोड़कर भागने वाले अपराधियों की संपत्ति जब्त करने के लिए यह कड़ा कानून लाया गया।
4. सूचना का अधिकार (RTI) का सक्रिय उपयोग
भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए नागरिक अब RTI का अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग कर रहे हैं। कई आरटीआई कार्यकर्ताओं ने स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के घोटालों का पर्दाफाश किया है।
Frequently Asked Questions (FAQs)
भ्रष्टाचार लोगों के आचरण में मौलिक तत्वों तथा नैतिकता का समाप्त हो जाना है। यदि लोगों में मौलिक तत्व, संवेदनशीलता तथा अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा होगी, तो भ्रष्टाचार जैसी समस्या को जड़ से समाप्त किया जा सकता है।
भारत भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक 2019 में 41 अंको के साथ 80वें स्थान पर है। इस सूचकांक में न्यूजीलैंड और डेनमार्क शीर्ष स्थान पर है। जबकि सोमालिया सबसे अंतिम स्थान पर है।
भ्रष्टाचार कई प्रकार के हैं। सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार के कई उदाहरण देखने को मिलते हैं। इसके अलावा राजनैतिक, पुलिस, न्यायिक, शिक्षा प्रणाली सहित अन्य कई क्षेत्रों में भ्रष्टाचार देखने को मिलता है।
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