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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay in Hindi) - जब आध्यात्मिकता की बात की जाती है तो भारत का नाम आना सहज ही है। परंतु अध्यमिकता को विश्व-पटल पर ले जानें का श्रेय किसी को दिया जाता है, तो स्वामी विवेकानंद जी का नाम सबसे पहले आता है। विश्व में भारत की पहचान स्थापित करने का कार्य स्वामी विवेकानंद जी ने ही शुरू किया। यह उस समय की बात है जब भारत अक्रांताओं से पीड़ित था। औपनिवेशिक काल में भारत अपनी अस्मिता ढूँढने का प्रयास कर रहा था। यह ऐसे समय की बात है जब भारत को सांपों और सपेरो के देश के रूप में देखा जाता था। भारतियों को हीन दृष्टि से देखा जाता था। उस समय वास्तविक भारत को विश्व के समक्ष प्रस्तुत करने का कार्य स्वामी विवेकानंद जी ने किया।
उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता।
एक विचार लें और इसे ही अपनी जिंदगी का एकमात्र विचार बना लें। इसी विचार के बारे में सोचे, सपना देखे और इसी विचार पर जिएं। आपके मस्तिष्क , दिमाग और रगों में यही एक विचार भर जाए। यही सफलता का रास्ता है। इसी तरह से बड़े बड़े आध्यात्मिक धर्म पुरुष बनते हैं।
एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकि सब कुछ भूल जाओ।
पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है।
एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारो बार ठोकर खाने के बाद ही होता है।
स्वामी विवेकानंद जी ने विश्व के समक्ष भारत की बौद्धिक शक्ति को उजागर करने का प्रयास किया। स्वामी विवेकानंद जी ने भारतीय वेदान्त दर्शन, भारतीय परंपरा तथा सनातन धर्म के बारे में विश्व को जागरूक किया। हमारे देश के सामर्थ्य को दुनिया के सामने प्रकट करने में स्वामी विवेकानंद जी का बहुत बड़ा योगदान हैं। अक्सर छात्र विवेकानंद पर निबंध या विवेकानंद पर स्पीच(swami vivekananda speech in hindi) इंटरनेट पर सर्च करते रहते है। स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda essay in hindi) के माध्यम से आप स्वामी विवेकानंद जी के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे। इसके अलावा आप स्वामी विवेकानंद पर स्पीच (swami vivekananda speech in hindi) भी दें पाएंगे। अपनी जानकारी को समृद्ध करने के लिए स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda essay in hindi) को पूरा पढ़ें।
महत्वपूर्ण लेख :
विवेकानंद जी का जन्म कोलकाता के कायस्थ परिवार में 12 जनवरी 1863 को हुआ। उनका वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त तथा माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान से हुई। इसके बाद उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीजन प्राप्त किया। स्वामी विवकानंद जी की स्कूली शिक्षा अनियमित थी लेकिन उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। इसके अलावा उन्होंने ललित कला परीक्षा भी उत्तीर्ण की। उनकी वास्तविक रुचि वेदों, उपनिषदों, शास्त्रों, पुराणों आदि में हमेशा से ही थी। वह हमेशा से ही परमतत्व यानि ईश्वर को प्राप्त करने के लिए उत्साहित रहते थे। अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में आने के बाद उन्होंने 25 वर्ष की आयु में सन्यास ग्रहण किया। सन्यास लेने के बाद विवेकानंद जी का नाम वर्ष 1893 में खेतड़ी राज्य के महाराजा अजित सिंह के नाम पर 'विवेकानंद' रखा गया।
सन्यास ग्रहण करने के बाद स्वामी विवेकानंद जी ने भारत भ्रमण तथा विश्व यात्रा करना आरंभ कर दिया। स्वामी विवेकानंद जी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पैदल भ्रमण के बाद जापान, चीन कनाडा की यात्रा करते हुए 1893 में अमेरिका के शिकागो पहुंचे। जहां उन्होंने धर्म सभा को संबोधित किया और अपना विश्व प्रसिद्ध भाषण दिया। इस भाषण की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:
स्वामी विवेकानंद जी ने सबसे पहले अमेरिका के लोगो को बहन तथा भाई कहकर संबोधित किया।
स्वामी विवेकानंद जी ने भारतीय समाज को सहिष्णु तथा सार्वभौम स्वीकृत करने वाला बताया।
उन्होंने भारत को वास्तव में सभी धर्मो का सम्मान करने वाला बताया।
उनके अनुसार भारत उन सभी लोगो को शरण देता है, जो दुनिया के दूसरे भागों में शोषित किए गए है।
उन्होंने एक श्लोक- ‘रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव॥’ की चर्चा करते हुए कहा कि इसका तात्पर्य है कि जैसे विभिन्न नदियां अलग-अलग मार्गों के माध्यम से यात्रा करती हुई अंत में समुद्र में जाकर मिलती है। उसी प्रकार अलग-अलग धर्मों का अनुसरण करते हुए व्यक्ति अंत में ईश्वर को प्राप्त करना चाहता है। ये धर्म बेशक अलग-अलग लगते है परंतु अंत में ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग हैं।
स्वामी विवेकानंद जी के अनुसार साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उनके वीभत्स वंशजों ने इस सुन्दर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज किया हैं। इनके कारण पृथ्वी कई बार रक्त से लाल हो चुकी है। यदि ये न होते तो मानव विकास अपने चरमोत्कर्ष पर होता और न जानें कितनी सभ्यताएं जो इनकी हठधर्मिता की बलि चढ़ गई, आज जीवित होती।
इस भाषण से देश-विदेश में उनकी ख्याति हुई। बहुत से लोग उनके अनुयायी बन गए। उन्होंने भारतीय तत्व-ज्ञान का प्रसार किया। उनकी भाषण-शैली के कारण अमेरिका के समाचार पत्रों ने उन्हें 'साइक्लॉनिक हिन्दू' का नाम प्रदान किया। उनका मानना था कि "अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जायेगा।"
करियर संबंधी महत्वपूर्ण लेख :
विवेकानंद जी का योगदान भारतीय समाज के उद्धार के लिए अविश्वसनीय है। उन्होंनें देश के सर्वांगीण विकास के लिए हमेशा प्रयास किए। भारत के बारे में वास्तविक ज्ञान का प्रसार करने का श्रेय विवेकानंद जी को ही जाता है। उन्होंने अमेरिकी मंच से भारतीय दर्शन को पहचान दिलवाई। उन्होंने ही विश्व को अध्यात्म का मार्ग दिखाया। विवेकानंद जी ने 1 मई 1897 रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। जिसका परम उद्देश्य वेदान्त दर्शन का प्रचार करना है तथा मानव सेवा और परोपकार करना है।
विवेकानंद जी ने शिक्षा और चरित्र निर्माण पर बल दिया है। वें मैकाले द्वारा प्रस्तावित उस समय की शिक्षा प्रणाली के विरोधी थे। क्योंकि इस शिक्षा प्रणाली के माध्यम से केवल बाबुओं का ही जन्म होता। इस शिक्षा प्रणाली के माध्यम से छात्रों के विकास में बाधा आनी तय थी। विवेकानंद जी चाहते थे की देश के युवाओं का सर्वांगीण विकास हो। वें छात्रों की व्यवहारिक शिक्षा पर अधिक बल देते थे। वें चाहते थे कि देश का युवा आत्म-निर्भर बने।
स्वामी विवेकानंद जी के अनुसार शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्तित्व का निर्माण और व्यवहारिक जानकारी प्राप्त करने से है। यदि किसी व्यक्ति में इन दोनों ही तत्वों कि कमी है तो ऐसी शिक्षा किस काम की। यदि व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी अपना सर्वांगीण विकास करने मे असमर्थ है तो ऐसी शिक्षा निराधार है। विवेकानंद जी के अनुसार "हमें ऐसी शिक्षा चाहिए, जिससे चरित्र का गठन हो, मन का बल बढ़े, बुद्धि का विकास हो और व्यक्ति स्वावलम्बी बने।" उनके अनुसार 'शिक्षा से तात्पर्य मनुष्य की अंतरात्मा पूर्णता की अभिव्यक्ति से है।'
युवाओं के प्रति इन विचारों के कारण भारत सरकार ने विवेकानंद जी की जयंती पर राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने का निर्णय लिया। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 1984 को 'राष्ट्रीय युवा वर्ष' के रूप में घोषित किया गया। भारत सरकार ने इसकी महत्ता पर विचार करते हुए 12 जनवरी जो कि विवेकानंद जी की जयंती भी है, को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। स्वामी विवेकानंद जी युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत रहें हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन मानव कल्याण तथा सेवा में समर्पित किया है। उनकी गुरु भक्ति भी हमेशा से ही प्रेरणादायक रही है। इन गुणों को आत्मसात कर आज का युवा श्रेष्ठ युवा बन सकता है।
अन्य लेख पढ़ें-
खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी वह एक सत्य ही होगा।
विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है।
जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो।
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था - चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो।
अन्य महत्वपूर्ण लेख :
आज के युग में विवेकानंद जी के विचार बहुत अधिक प्रासांगिक है। यदि आप इनका अनुसरण करते है तो यह आपके चरित्र निर्माण से लेकर आपके पूरे व्यक्तित्व को परिवर्तित कर देंगे। स्वामी विवेकानंद जी हमेशा से ही प्रेरणा का स्त्रोत रहें हैं। उनका जीवन-चरित्र अपने आप में प्रेरणादायक है। जीवन संघर्ष का नाम है। स्वामी विवेकानंद जी ने स्वयं भी बहुत अधिक संघर्ष किया परंतु वें अपने जीवन की कठिनाइयों में तटस्थ रहें और कभी भी सत्य, ज्ञान, सेवा तथा परोपकार का मार्ग नहीं छोड़ा। आज उनके विचार हमारे बीच एक ज्योति का काम कर रहें है। इनके विचारों से प्रेरणा तो मिलती ही है साथ ही संघर्ष करने की शक्ति भी प्राप्त होती है। आज आप और हम उनके विचारों को आत्मसात कर अपनी समस्याओं, कठियाइयों तथा संघर्ष पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
स्वामी विवेकानंद शिकागो में 1893 में हुए विश्व धर्म महासभा में हिस्सा लेने पहुंचे थे। वहां दिए गए भाषण की सर्वत्र प्रशंसा हुई। वहां दिया गया उनका भाषण आज भी उल्लेखनीय है। वह भाषण इस प्रकार है-
मेरे अमरीकी बहनों और भाइयों!
आपने जिस सम्मान सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया हैं उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा हैं। संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूं; धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूं; और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि कोटि हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूं।
मैं इस मंच पर से बोलने वाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूं जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का उल्लेख करते समय आपको यह बतलाया है कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रचारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं। मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूं जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृत- दोनों की ही शिक्षा दी हैं। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते वरन समस्त धर्मों को सच्चा मान कर स्वीकार करते हैं। मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है। मुझे आपको यह बतलाते हुए गर्व होता हैं कि हमने अपने वक्ष में उन यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी जिस वर्ष उनका पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया था। ऐसे धर्म का अनुयायी होने में मैं गर्व का अनुभव करता हूं जिसने महान जरथुष्ट जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा है। भाईयो मैं आप लोगों को एक स्तोत्र की कुछ पंक्तियां सुनाता हूं जिसकी आवृति मैं बचपन से कर रहा हूं और जिसकी आवृति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं :
रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव॥
अर्थात जैसे विभिन्न नदियां भिन्न-भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्न-भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जानेवाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं।
यह सभा, जो अभी तक आयोजित सर्वश्रेष्ठ पवित्र सम्मेलनों में से एक है स्वतः ही गीता के इस अद्भुत उपदेश का प्रतिपादन एवं जगत के प्रति उसकी घोषणा करती है :
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्। मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥
अर्थात जो कोई मेरी ओर आता है-चाहे किसी प्रकार से हो-मैं उसको प्राप्त होता हूं। लोग भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करते हुए अन्त में मेरी ही ओर आते हैं।
साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी वीभत्स वंशधर धर्मान्धता इस सुन्दर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी हैं। वे पृथ्वी को हिंसा से भरती रही हैं व उसको बारम्बार मानवता के रक्त से नहलाती रही हैं, सभ्यताओं को ध्वस्त करती हुई पूरे के पूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही हैं। यदि ये वीभत्स दानवी शक्तियां न होतीं तो मानव समाज आज की अवस्था से कहीं अधिक उन्नत हो गया होता। पर अब उनका समय आ गया हैं और मैं आन्तरिक रूप से आशा करता हूं कि आज सुबह इस सभा के सम्मान में जो घण्टा ध्वनि हुई है वह समस्त धर्मान्धता का, तलवार या लेखनी के द्वारा होनेवाले सभी उत्पीड़नों का तथा एक ही लक्ष्य की ओर अग्रसर होने वाले मानवों की पारस्पारिक कटुता का मृत्यु निनाद सिद्ध हो।
ये भी देखें :
महत्वपूर्ण प्रश्न :
स्वामी विवेकानंद के बारे में स्पीच (swami vivekanand ke bare mein speech) कैसे दें?
स्वामी विवेकानंद के बारे में स्पीच या भाषण देने से पहले विवेकानंद के बारे में लेख पढ़ें। इस लेख में उनकी जीवनी और विचार दिए हुए है। इसके आधार पर एक भाषण तैयार करें जिसमें उनका जीवन परिचय, उनके कार्य, उनके प्रमुख योगदान, उनकी प्रेरणादायक बातों का जिक्र करें। स्वामी विवेकानंद के बारे में स्पीच देने के लिए इस लेख की मदद ले सकते हैं।
स्वामी विवेकानंद के बारे में (about swami vivekananda in hindi) और स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (swami vivekananda ji ka jivan parichay) कैसे लिखें?
स्वामी विवेकानंद के बारे में लिखने के लिए उनके जीवन परिचय से शुरुआत करें और उनके कार्यों की चर्चा करें। इसके लिए इस लेख की सहायता ले सकते हैं और इस प्रकार से लिख सकते हैं-
विवेकानंद जी का जन्म पश्चिम बंगाल के कायस्थ परिवार में 12 जनवरी 1863 को हुआ। उनका वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त तथा माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान से हुई। उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। उनकी वास्तविक रुचि वेदों, उपनिषदों, शास्त्रों, पुराणों आदि में हमेशा से ही थी। अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में आने के बाद उन्होंने 25 वर्ष की आयु में सन्यास ग्रहण किया। स्वामी विवेकानंद जी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पैदल भ्रमण के बाद जापान, चीन कनाडा की यात्रा करते हुए 1893 में अमेरिका के शिकागो पहुंचे। जहां उन्होंने धर्म सभा को संबोधित किया और अपना विश्व प्रसिद्ध भाषण दिया।
उन्होंने अमेरिकी मंच से भारतीय दर्शन को पहचान दिलवाई। विवेकानंद जी ने 1 मई 1897 रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। जिसका परम उद्देश्य वेदान्त दर्शन का प्रचार करना है तथा मानव सेवा और परोपकार करना है। विवेकानंद जी ने शिक्षा और चरित्र निर्माण पर बल दिया है। विवेकानंद जी चाहते थे की देश के युवाओं का सर्वांगीण विकास हो। वें छात्रों की व्यवहारिक शिक्षा पर अधिक बल देते थे। वें चाहते थे कि देश का युवा आत्मनिर्भर बने।
स्वामी विवेकानन्द का मूल नाम क्या था? (what was the original name of swami vivekananda?)
विवेकानंद जी का वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में आने के बाद उन्होंने 25 वर्ष की आयु में सन्यास ग्रहण किया। सन्यास लेने के बाद विवेकानंद जी का नाम वर्ष 1893 में खेतड़ी राज्य के महाराजा अजित सिंह के नाम पर 'विवेकानंद' रखा गया।
राष्ट्रीय युवा दिवस कब मनाया जाता है? (rashtriy yuva divas kab manaya jata hai)
हर साल देश में 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। इसी दिन स्वामी विवेकानंद की जयंती भी होती है। 1984 में भारत सरकार ने स्वामी विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की। 1985 से हर साल 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। इस दिन को युवा दिवस के रूप में मनाकर स्वामी विवेकानंद के विचारों और आदर्शों को बढ़ावा देना है।
राष्ट्रीय युवा दिवस 2025 की थीम क्या है?
इस वर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस का विषय "राष्ट्र निर्माण के लिए युवा सशक्तिकरण" है। इसके साथ ही इस वर्ष इसकी थीम "युवा एक स्थायी भविष्य के लिए: लचीलेपन और जिम्मेदारी के साथ राष्ट्र को आकार देना" (Youth for a Sustainable Future: Shaping the Nation with Resilience and Responsibility) है। इसके साथ ही पिछले कुछ वर्षों की थीम भी नीचे देख सकते हैं।
राष्ट्रीय युवा दिवस की थीम (Themes of National Youth Day in Hindi)
वर्ष थीम
2021 "युवा-उत्साह नये भारत का"
2022 "यह सब मन में है"
2023 "विकसित युवा-विकसित भारत"
2024 'मेरा भारत-विकसित भारत@2047- युवाओं द्वारा, युवाओं के लिए'
2025 "राष्ट्र निर्माण के लिए युवा सशक्तिकरण"
राष्ट्रीय युवा दिवस किसे समर्पित है?
12 जनवरी को युवा दिवस के रूप में मनाने का चयन करने के पीछे मुख्य उद्देश्य स्वामी विवेकानंद के विचारों और शिक्षाओं को युवाओं तक पहुंचाना था। पहली बार 12 जनवरी 1985 को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया गया और इसके बाद हर साल से ये दिन युवाओं के लिए समर्पित करते हुए मनाया जा रहा है।
स्वामी विवेकानंद जी के सिद्धांत को प्रतिपादित करते कुछ उद्धरण इस प्रकार हैं:
स्वामी विवेकानंद जी ने विश्व को सत्य, ज्ञान, सेवा तथा परोपकार का उपदेश दिया।
स्वामी विवेकानंद अपने जीवन में बेहद महत्वपूर्ण कार्य किए है। जिसमें से भारत की अस्मिता को विश्व पटल पर रखना सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। इसके अलावा स्वामी विवेकानंद जी ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की तथा भारत में जन-कल्याण तथा जागरूकता के क्षेत्र में बहुत काम किया।
स्वामी विवेकानंद जी पर निबंध लिखना बेहद ही कठिन कार्य है क्योंकि उनका व्यक्तित्व अपने आप में बेहद ही विशाल है। छात्र स्वामी विवेकानंद जी पर निबंध लिखने पर असमंजस की स्थिति में पढ़ जाते हैं कि उनके व्यक्तिव की किस विशेषता को अपने निबंध में स्थान दें। ऐसे में छात्र careers360 के इस निबंध का अनुसरण कर सकते हैं।
स्वामी विवेकानंद जी को किसी भी परिचय की आवश्यकता नहीं है। स्वामी विवेकानंद देश को विश्व स्तर पहचान दिलवाने वाले महान व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे। स्वामी विवेकानंद जी पर निबंध के माध्यम से आप उनके बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
हर साल 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। यह दिन स्वामी विवेकानंद की जयंती है, जिन्हें युवाओं के लिए प्रेरणा माना जाता है। 1984 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने 'अन्तरराष्ट्रीय युवा वर्ष' घोषित किया था। इसी के बाद भारत सरकार ने 1984 में 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया।
स्वामी विवेकानंद के विचार थे
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