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कुंभ मेला पर निबंध (Essay on Kumbh Mela in Hindi) - हिंदू धार्मिक परंपराओं में कुंभ मेला महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कुंभ मेला भारत के चार पावन शहरों में बारी–बारी से आयोजित होता है। ये चार शहर हैं- प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार और नासिक। नासिक-त्र्यंबेश्वर सिंहस्थ कुंभ मेला 2026 में 31 अक्टूबर को दो प्रमुख तीर्थ नगरी में पारंपरिक ध्वजारोहण के साथ आरंभ होगा। ध्वजाराेहण त्र्यंबकेश्वर के साथ रामकुंड और पंचवटी में भी होगा। पहला अमृत स्नान 2 अगस्त 2027 को गोदावरी नदी में होगा। दूसरा अमृत स्नान 31 अगस्त 2027 को और तीसरा व अंतिम स्नान 11 सितंबर 2027 को नासिक में और 12 सितंबर 2027 को त्र्यंबकेश्वर में होगा। ध्वज 24 जुलाई 2028 को उतारा जाएगा।
इससे पहले 2025 में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हुआ। कुंभ मेला तिथि (kumbh mela 2025 dates in hindi) के अनुसार, प्रयागराज महाकुंभ की शुरुआत 13 जनवरी को हुई और 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन कुंभ मेला 2025 का समापन हुआ। इस कुंभ मेला निबंध (essay on kumbh mela in hindi) में हम कुंभ मेला क्यों मनाया जाता है? कुंभ कब–कब आयोजित होता है? कुंभ मेला का धार्मिक महत्व क्या है, इस प्रकार के तथ्यों पर चर्चा करेंगे?
पूर्ण कुंभ मेला हर 12 साल में आयोजित किया जाता है, जबकि अर्ध (आधा) मेला लगभग 6 साल बाद उसी स्थान पर आयोजित किया जाता है। इस साल प्रयागराज में महाकुंभ 2025 (Kumbh Mela Prayagraj in hindi) का भव्य आयोजन हुआ। इसमें करोड़ों श्रद्धालु पहुंचे। मेले के लिए यूपी सरकार की तरफ से अनेक प्रबंध किए गए। कुंभ मेला 12 वर्षों में 4 बार मनाया जाता है। हरिद्वार और प्रयागराज में अर्द्धकुंभ मेला हर छठे वर्ष आयोजित किया जाता है। महाकुंभ मेला 144 वर्षों (12 'पूर्ण कुंभ मेलों' के बाद) के बाद प्रयाग में मनाया जाता है। प्रयागराज में प्रतिवर्ष माघ (जनवरी-फरवरी) महीने में माघ कुंभ मनाया जाता है। 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के अवसर पर शाही स्नान के साथ प्रयागराज महाकुंभ मेले का समापन हुआ।
पुराण और हिंदू धार्मिक पुस्तकों में कहा गया है कि कुंभ मेले में स्नान करने से सारे पाप खत्म हो जाते हैं और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। कुंभ का अर्थ है घड़ा। 'कुंभ' शब्द की उत्पत्ति 'कुंभक' (अमरता के अमृत का पवित्र घड़ा) धातु से हुई है। दरअसल, कुंभ मेले की शुरुआत एक पौराणिक कहानी से हुई है। पौराणिक कहानी के अनुसार, देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन हुआ।समुद्र मंथन की कहानी ये है कि ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण देवता कमजोर हो गए थे। राक्षसों ने इसका फायदा उठाकर देवताओं को हरा दिया था। जिसके बाद सभी देवता भगवान विष्णु के पास गुहार लगाने पहुंचे। भगवान विष्णु ने कहा कि अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन करना होगा। अमृत, यानी ऐसा अमर पेय जो पीने से देवता फिर से ताकतवर हो जाएंगे।
देवताओं ने राक्षसों को और ताकतवर होने की बात कह मना लिया कि चलो, मिलकर समुद्र मंथन करते हैं। राक्षस भी अमृत के लालच में तैयार हो गए। जब समुद्र मंथन हुआ, तो 14 रत्न निकले – अमृत कलश, हलाहल विष, कामधेनु गाय, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, अप्सरा रंभा, माता लक्ष्मी, वारुणी मदिरा, चंद्रमा, शारंग धनुष, पांचजन्य शंख, धन्वंतरि, उच्चैश्रवा घोड़ा।
इस मंथन में विष के साथ आखिरी में अमृत कलश भी मिला था। सम्रद्र मंथन से ही अमृत कलश निकला, राक्षस और देवता दोनों उसे प्राप्त करने के लिए झगड़ने लगे। एक कथा के अनुसार, इस बीच भगवान इंद्र के बेटे जयंत ने अमृत कलश उठाया और वहां से भाग लिया। अब राक्षसों ने जयंत का पीछा किया। इस दौरान 12 दिनों तक देवताओं और राक्षसों के बीच लड़ाई चली। इंद्रपुत्र जयंत अमृत कलश को लेकर भागते रहे और इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर गिर गईं। ये चार स्थान प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक हैं। वहीं दूसरी कथा के अनुसार अमृत कलश को असुरों से बचाने के लिए सुरक्षा की जिम्मेदारी वृहस्पति, सूर्य, चंद्र और शनि को सौपीं गई थी। चार देवता असुरों से अमृत कलश को बचाकर भागे और इसी दौरान असुरों ने देवताओं का पीछा 12 दिन और रातों तक किया। पीछा करने के दौरान देवताओं ने कलश को हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में रखा। कलश रखने के कारण इन जगहों को पवित्र माना जाता है और हर 12 साल में इन 4 जगहों पर कुंभ मनाया जाता है और यहां कुंभ मेले का आयोजन होता है।
लोगों के मन में यह सवाल होता है कि कुंभ मेला कितने साल बाद लगता है (Kumbh Mela kitne saal baad lagta) तो इसका जवाब है कुंभ मुला हर 12 साल बाद लगता है। अब सवाल आता है कि कुंभ मेला हर 12 साल में ही क्यों होता है? दरअसल, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जयंत को अमृत कलश लेकर स्वर्ग पहुंचने में 12 दिन लगे थे। देवताओं का एक दिन पृथ्वी के एक साल के बराबर होता है। इसलिए कुंभ मेला 12 वर्ष के अंतराल पर मनाया जाता है। महाकुंभ 2025 (Mahakumbh 2025 in hindi) सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं है बल्कि यह आस्था, संस्कृति और परंपरा का संगम भी है। यहां करोड़ों लोग पवित्र नदियों में स्नान करने आते हैं। मान्यता है कि कुंभ स्नान से लोगों के पाप धुल जाते हैं और जीवन में सफलता मिलती है।
कुंभ मेला में हर दिन लाखों श्रद्धालु आते हैं और विशेष दिन पर यह संख्या करोड़ों में पहुंच जाती है। इस बार प्रयागराज महाकुंभ 2025 में 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा के शाही स्नान के साथ जब कुंभ मेला 2025 (kumbh mela 2025 in hindi) आरंभ हुआ उस दिन 1.65 करोड़ लोगों ने पवित्र संगम में डुबकी लगाई जबकि अगले दिन मकर संक्रांति के अवसर पर 3.5 करोड़ लोगों ने डुबकी लगाई। यूपी सरकार ने लोगों की भारी भीड़ को देखते हुए कुंभ मेला 2025 (kumbh mela 2025 in hindi) के लिए व्यापक प्रबंध किए हैं। संगम तट पर महाकुंभ 2025 (Mahakumbh 2025 in hindi) के लिए पूरा शहर बसाया गया है। सड़कें बनाई गई हैं। स्ट्रीट लाइट, साधु–संतों के लिए नगर, स्नान के लिए घाट, सुरक्षा, मेडिकल, ट्रांसपोर्ट सहित अनेक व्यवस्था की गई है।
प्रयागराज में अगले 144 साल के महाकुंभ मेले की सही तारीख की अभी तक आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन अनुमान है कि यह 22वीं सदी में आयोजित होगा।
पूर्ण कुंभ मेला हर 12 साल में आयोजित किया जाता है, जबकि अर्ध (आधा) मेला लगभग 6 साल बाद उसी स्थान पर आयोजित किया जाता है। 2013 का कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम था जिसमें लगभग 120 मिलियन आगंतुक आए थे। 2019 की शुरुआत में अर्ध कुंभ मेला आयोजित किया गया था। 2013 में 14 जनवरी से 10 मार्च तक कुंभ आयोजित हुआ था। 14 जनवरी 2013 को पहला शाही स्नान किया गया था। 10 फरवरी 2013 को करोड़ों श्रद्धालुओं ने कुंभ में डुबकी लगाई थी।
देवता असुरों से अमृत कलश को बचाकर भागे और इसी दौरान असुरों ने देवताओं का पीछा 12 दिन और रातों तक किया। पीछा करने के दौरान अमृत कलश की बूंदे हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में गिरी थीं। हर 12 साल में इन 4 जगहों पर कुंभ मनाया जाता है।
कुंभ मेला को माघ मेला भी कहा जाता है। प्रयाग कुंभ मेला , जिसे इलाहाबाद कुंभ मेला भी कहा जाता है, हिंदू धर्म से जुड़ा एक मेला या धार्मिक आयोजन है और भारत के प्रयागराज शहर में त्रिवेणी संगम, गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदी के संगम पर आयोजित किया जाता है। कुंभ मेले का दूसरा नाम महाकुंभ है। महाकुंभ मेला हर 144 साल में आयोजित होता है। कुंभ मेले के 12 चक्रों को पूरा करने के बाद महाकुंभ लगता है। कुंभ मेला हर 12 साल में हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन, और नासिक में से किसी एक जगह पर लगता है। प्रयागराज और हरिद्वार में हर छह साल में अर्ध-कुंभ का आयोजन होता है। कुंभ मेले की शुरुआत मकर संक्रांति से होती है और इसका समापन महाशिवरात्रि के दिन होता है। महाकुंभ में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाकुंभ में लाखों श्रद्धालु, संत, महात्मा, और अखाड़े शामिल होते हैं। महाकुंभ, हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए आस्था का एक मुख्य केंद्र है। महाकुंभ को देवताओं और ऋषियों द्वारा भी अत्यधिक पवित्र माना गया है।
परीक्षार्थियों को कुंभ मेले के बारे में 10 लाइन लिखने को भी कहा जाता है। यहां कुंभ मेला पर 10 लाइन (10 lines on Kumbh Mela in Hindi) दिया गया है:
कुंभ मेला दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समारोहों में से एक है, जिसमें करोड़ों लोग पहुंचते हैं।
यह हर 12 वर्ष में चार स्थानों पर आयोजित किया जाता है: प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, यह आयोजन समुद्र मंथन की पौराणिक घटना पर आधारित है और उन पवित्र जगहों पर मनाया जाता है जहां अमृत की बूंदें गिरी थीं।
इस त्योहार में लाखों लोग शामिल होते हैं जिनमें संत, तीर्थयात्री और पर्यटक शामिल होते हैं।
नागा साधुओं के भव्य जुलूस और आध्यात्मिक प्रवचन मुख्य आकर्षण हैं।
कथा, प्रवचन, भक्ति संगीत, नृत्य और अनुष्ठान जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम त्योहार के अनुभव को समृद्ध करते हैं।
प्रयागराज कुंभ विशेष रूप से प्रसिद्ध है जो गंगा, यमुना और अदृष्य सरस्वती के पावन संगम पर आयोजित होता है।
2025 प्रयागराज महाकुंभ 13 जनवरी से 26 फरवरी तक आयोजित किया गया।
2025 प्रयागराज महाकुंभ इतिहास का सबसे बड़ा आयोजन साबित हुआ।
कुंभ मेला आस्था, एकता और भारत की समृद्ध आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।
प्रयागराज महाकुंभ में शाही स्नान का विशेष महत्व है। 2025 की शाही स्नान की तिथियां नीचे दी गई हैं–
13 जनवरी– : पौष पूर्णिमा
14 जनवरी : मकर संक्रांति
29 जनवरी : मौनी अमवस्या
3 फरवरी : बसंत पंचमी
12 फरवरी : माघी पूर्णिमा
26 फरवरी : महाशिवरात्रि
प्रयागराज महाकुंभ में मौनी अमावस्या पर उमड़ी भारी भीड़ के बाद 29 जनवरी को भगदड़ मच गई। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस भगदड़ में कम से कम 30 लाेगों के मारे जाने की खबर है। प्रयागराज महाकुंभ में लोगों की भारी भीड़ उमड़ रही है। ट्रेनों में लोग भरकर जा रहे हैं। प्रमुख शहरों से प्रयागराज जाने वाली फ्लाइट का किराया आसमान छू रहा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली से प्रयागराज का फ्लाइट का किराया दिल्ली से लंदन जाने के बराबर हो गया है। अब प्रमुख अखाड़ों के प्रमुख और अन्य साधु संतों ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि वे संगम पर स्नान करने की जिद न करें। किसी भी घाट पर स्नान कर सकते हैं। गंगा के सभी घाटों का जल अमृत तुल्य है। मेला क्षेत्र में वीआईपी प्रोटोकॉल हटा दिया गया है। कुंभ में जाने पर सावधानी रखें। भारी भीड़ वाले इलाके में जाने से बचें। स्नान के प्रमुख दिवस जिस दिन अधिक भीड़ होती है, उस दिन जानें से बचें।
महाकुंभ में देश के प्रमुख लोग भी पवित्र संगम में डुबकी लगाने पहुंचते हैं। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, कई केंद्रीय मंत्री, विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री, अभिनेता, अभिनेत्री, बिजनेसमैन अंबानी परिवार, वेदांता प्रमुख अनिल अग्रवाल समेत कई प्रमुख हस्तियां पहुंच चुकी हैं।
कुंभ भारत के चार पवित्र शहरों में इन नदियों के तट पर आयोजित होता है।
हरिद्वार में गंगा के तट पर
उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर (Ujjain Kumbh Mela in hindi)
नासिक में गोदावरी (दक्षिण गंगा) के तट पर
प्रयागराज में गंगा, यमुना और पौराणिक अदृश्य सरस्वती के संगम पर।
श्रद्धालु कुंभ के दौरान इन पवित्र नदियों में स्नान कर मोक्ष प्राप्त करने की कामना करते हैं।
यूपी के प्रयागराज में सबसे बड़ा कुंभ मेला लगता है। प्रयाग के कुंभ का विशेष महत्व रहा है, यहीं पर पूर्ण कुंभ और महाकुंभ का आयोजन होता है, बाकी जगह नहीं होता।
हर 12 साल में चारों जगहों हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन होता है। जबकि अर्धकुंभ का आयोजन केवल प्रयागराज और हरिद्वार में होता है। दोनों जगह हर 6 साल में अर्धकुंभ होता है। पूर्ण कुंभ मेला सिर्फ प्रयागराज में हर 12 साल में आयोजित होता है। महाकुंभ दुर्लभ आयोजन है जोकि 12 पूर्ण कुंभ लग जाने के बाद यानी 144 साल बाद आता है, जिसे महाकुंभ मेला कहते हैं। यह सिर्फ प्रयागराज में आयोजित होता है।
अगला कुंभ वर्ष 2027 में नासिक-त्र्यंबकेश्वर में लगेगा। उत्तर प्रदेश के प्रयाणराज में महाकुंभ के बाद महाराष्ट्र सरकार वर्ष 2027 में लगने वाले नासिक-त्र्यंबकेश्वर सिंहस्थ महाकुंभ को भव्य और दिव्य बनाने के लिए अभी से ही तैयारी में लग गई है। उसके बाद का कुंभ उज्जैन (Ujjain Kumbh Mela in hindi) में आयोजित होगा। उज्जैन कुंभ मेला साल 2028 में 27 मार्च से 27 मई 2028 तक उज्जैन में लगेगा। उज्जैन के कुंभ मेले को सिंहस्थ मेला भी कहते हैं। यह मेला शिप्रा नदी के तट पर लगता है। इस मेले में लाखों तीर्थयात्री आते हैं। उज्जैन में 12 साल के बाद कुंभ का आयोजन होगा। इससे पहले उज्जैन में पिछला कुंभ मेला साल 2016 में लगा था। यह मेला हर 12 साल में लगता है।
मध्यप्रदेश में कुभ मेला क्षिप्रा नदी के तट पर उज्जैन में लगता है।
हां, प्रयागराज में 2025 का कुंभ महाकुंभ है।
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