कुंभ मेला पर निबंध (Essay on Kumbh Mela in Hindi) - हिंदू धार्मिक परंपराओं में कुंभ मेला महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कुंभ मेला भारत के चार पावन शहरों में बारी–बारी से आयोजित होता है। ये चार शहर हैं- प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार और नासिक। नासिक-त्र्यंबेश्वर सिंहस्थ कुंभ मेला 2026 में 31 अक्टूबर को दो प्रमुख तीर्थ नगरी में पारंपरिक ध्वजारोहण के साथ आरंभ होगा। ध्वजाराेहण त्र्यंबकेश्वर के साथ रामकुंड और पंचवटी में भी होगा। पहला अमृत स्नान 2 अगस्त 2027 को गोदावरी नदी में होगा। दूसरा अमृत स्नान 31 अगस्त 2027 को और तीसरा व अंतिम स्नान 11 सितंबर 2027 को नासिक में और 12 सितंबर 2027 को त्र्यंबकेश्वर में होगा। ध्वज 24 जुलाई 2028 को उतारा जाएगा।
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इससे पहले 2025 में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हुआ। कुंभ मेला तिथि (kumbh mela 2025 dates in hindi) के अनुसार, प्रयागराज महाकुंभ की शुरुआत 13 जनवरी को हुई और 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन कुंभ मेला 2025 का समापन हुआ। इस कुंभ मेला निबंध (essay on kumbh mela in hindi) में हम कुंभ मेला क्यों मनाया जाता है? कुंभ कब–कब आयोजित होता है? कुंभ मेला का धार्मिक महत्व क्या है, इस प्रकार के तथ्यों पर चर्चा करेंगे?
पूर्ण कुंभ मेला हर 12 साल में आयोजित किया जाता है, जबकि अर्ध (आधा) मेला लगभग 6 साल बाद उसी स्थान पर आयोजित किया जाता है। इस साल प्रयागराज में महाकुंभ 2025 (Kumbh Mela Prayagraj in hindi) का भव्य आयोजन हुआ। इसमें करोड़ों श्रद्धालु पहुंचे। मेले के लिए यूपी सरकार की तरफ से अनेक प्रबंध किए गए। कुंभ मेला 12 वर्षों में 4 बार मनाया जाता है। हरिद्वार और प्रयागराज में अर्द्धकुंभ मेला हर छठे वर्ष आयोजित किया जाता है। महाकुंभ मेला 144 वर्षों (12 'पूर्ण कुंभ मेलों' के बाद) के बाद प्रयाग में मनाया जाता है। प्रयागराज में प्रतिवर्ष माघ (जनवरी-फरवरी) महीने में माघ कुंभ मनाया जाता है। 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के अवसर पर शाही स्नान के साथ प्रयागराज महाकुंभ मेले का समापन हुआ।
पुराण और हिंदू धार्मिक पुस्तकों में कहा गया है कि कुंभ मेले में स्नान करने से सारे पाप खत्म हो जाते हैं और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। कुंभ का अर्थ है घड़ा। 'कुंभ' शब्द की उत्पत्ति 'कुंभक' (अमरता के अमृत का पवित्र घड़ा) धातु से हुई है। दरअसल, कुंभ मेले की शुरुआत एक पौराणिक कहानी से हुई है। पौराणिक कहानी के अनुसार, देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन हुआ।समुद्र मंथन की कहानी ये है कि ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण देवता कमजोर हो गए थे। राक्षसों ने इसका फायदा उठाकर देवताओं को हरा दिया था। जिसके बाद सभी देवता भगवान विष्णु के पास गुहार लगाने पहुंचे। भगवान विष्णु ने कहा कि अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन करना होगा। अमृत, यानी ऐसा अमर पेय जो पीने से देवता फिर से ताकतवर हो जाएंगे।
देवताओं ने राक्षसों को और ताकतवर होने की बात कह मना लिया कि चलो, मिलकर समुद्र मंथन करते हैं। राक्षस भी अमृत के लालच में तैयार हो गए। जब समुद्र मंथन हुआ, तो 14 रत्न निकले – अमृत कलश, हलाहल विष, कामधेनु गाय, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, अप्सरा रंभा, माता लक्ष्मी, वारुणी मदिरा, चंद्रमा, शारंग धनुष, पांचजन्य शंख, धन्वंतरि, उच्चैश्रवा घोड़ा।
इस मंथन में विष के साथ आखिरी में अमृत कलश भी मिला था। सम्रद्र मंथन से ही अमृत कलश निकला, राक्षस और देवता दोनों उसे प्राप्त करने के लिए झगड़ने लगे। एक कथा के अनुसार, इस बीच भगवान इंद्र के बेटे जयंत ने अमृत कलश उठाया और वहां से भाग लिया। अब राक्षसों ने जयंत का पीछा किया। इस दौरान 12 दिनों तक देवताओं और राक्षसों के बीच लड़ाई चली। इंद्रपुत्र जयंत अमृत कलश को लेकर भागते रहे और इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर गिर गईं। ये चार स्थान प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक हैं। वहीं दूसरी कथा के अनुसार अमृत कलश को असुरों से बचाने के लिए सुरक्षा की जिम्मेदारी वृहस्पति, सूर्य, चंद्र और शनि को सौपीं गई थी। चार देवता असुरों से अमृत कलश को बचाकर भागे और इसी दौरान असुरों ने देवताओं का पीछा 12 दिन और रातों तक किया। पीछा करने के दौरान देवताओं ने कलश को हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में रखा। कलश रखने के कारण इन जगहों को पवित्र माना जाता है और हर 12 साल में इन 4 जगहों पर कुंभ मनाया जाता है और यहां कुंभ मेले का आयोजन होता है।
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लोगों के मन में यह सवाल होता है कि कुंभ मेला कितने साल बाद लगता है (Kumbh Mela kitne saal baad lagta) तो इसका जवाब है कुंभ मुला हर 12 साल बाद लगता है। अब सवाल आता है कि कुंभ मेला हर 12 साल में ही क्यों होता है? दरअसल, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जयंत को अमृत कलश लेकर स्वर्ग पहुंचने में 12 दिन लगे थे। देवताओं का एक दिन पृथ्वी के एक साल के बराबर होता है। इसलिए कुंभ मेला 12 वर्ष के अंतराल पर मनाया जाता है। महाकुंभ 2025 (Mahakumbh 2025 in hindi) सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं है बल्कि यह आस्था, संस्कृति और परंपरा का संगम भी है। यहां करोड़ों लोग पवित्र नदियों में स्नान करने आते हैं। मान्यता है कि कुंभ स्नान से लोगों के पाप धुल जाते हैं और जीवन में सफलता मिलती है।
कुंभ मेला में हर दिन लाखों श्रद्धालु आते हैं और विशेष दिन पर यह संख्या करोड़ों में पहुंच जाती है। इस बार प्रयागराज महाकुंभ 2025 में 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा के शाही स्नान के साथ जब कुंभ मेला 2025 (kumbh mela 2025 in hindi) आरंभ हुआ उस दिन 1.65 करोड़ लोगों ने पवित्र संगम में डुबकी लगाई जबकि अगले दिन मकर संक्रांति के अवसर पर 3.5 करोड़ लोगों ने डुबकी लगाई। यूपी सरकार ने लोगों की भारी भीड़ को देखते हुए कुंभ मेला 2025 (kumbh mela 2025 in hindi) के लिए व्यापक प्रबंध किए हैं। संगम तट पर महाकुंभ 2025 (Mahakumbh 2025 in hindi) के लिए पूरा शहर बसाया गया है। सड़कें बनाई गई हैं। स्ट्रीट लाइट, साधु–संतों के लिए नगर, स्नान के लिए घाट, सुरक्षा, मेडिकल, ट्रांसपोर्ट सहित अनेक व्यवस्था की गई है।
प्रयागराज में अगले 144 साल के महाकुंभ मेले की सही तारीख की अभी तक आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन अनुमान है कि यह 22वीं सदी में आयोजित होगा।
पूर्ण कुंभ मेला हर 12 साल में आयोजित किया जाता है, जबकि अर्ध (आधा) मेला लगभग 6 साल बाद उसी स्थान पर आयोजित किया जाता है। 2013 का कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम था जिसमें लगभग 120 मिलियन आगंतुक आए थे। 2019 की शुरुआत में अर्ध कुंभ मेला आयोजित किया गया था। 2013 में 14 जनवरी से 10 मार्च तक कुंभ आयोजित हुआ था। 14 जनवरी 2013 को पहला शाही स्नान किया गया था। 10 फरवरी 2013 को करोड़ों श्रद्धालुओं ने कुंभ में डुबकी लगाई थी।
देवता असुरों से अमृत कलश को बचाकर भागे और इसी दौरान असुरों ने देवताओं का पीछा 12 दिन और रातों तक किया। पीछा करने के दौरान अमृत कलश की बूंदे हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में गिरी थीं। हर 12 साल में इन 4 जगहों पर कुंभ मनाया जाता है।
कुंभ मेला को माघ मेला भी कहा जाता है। प्रयाग कुंभ मेला , जिसे इलाहाबाद कुंभ मेला भी कहा जाता है, हिंदू धर्म से जुड़ा एक मेला या धार्मिक आयोजन है और भारत के प्रयागराज शहर में त्रिवेणी संगम, गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदी के संगम पर आयोजित किया जाता है। कुंभ मेले का दूसरा नाम महाकुंभ है। महाकुंभ मेला हर 144 साल में आयोजित होता है। कुंभ मेले के 12 चक्रों को पूरा करने के बाद महाकुंभ लगता है। कुंभ मेला हर 12 साल में हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन, और नासिक में से किसी एक जगह पर लगता है। प्रयागराज और हरिद्वार में हर छह साल में अर्ध-कुंभ का आयोजन होता है। कुंभ मेले की शुरुआत मकर संक्रांति से होती है और इसका समापन महाशिवरात्रि के दिन होता है। महाकुंभ में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाकुंभ में लाखों श्रद्धालु, संत, महात्मा, और अखाड़े शामिल होते हैं। महाकुंभ, हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए आस्था का एक मुख्य केंद्र है। महाकुंभ को देवताओं और ऋषियों द्वारा भी अत्यधिक पवित्र माना गया है।
परीक्षार्थियों को कुंभ मेले के बारे में 10 लाइन लिखने को भी कहा जाता है। यहां कुंभ मेला पर 10 लाइन (10 lines on Kumbh Mela in Hindi) दिया गया है:
कुंभ मेला दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समारोहों में से एक है, जिसमें करोड़ों लोग पहुंचते हैं।
यह हर 12 वर्ष में चार स्थानों पर आयोजित किया जाता है: प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, यह आयोजन समुद्र मंथन की पौराणिक घटना पर आधारित है और उन पवित्र जगहों पर मनाया जाता है जहां अमृत की बूंदें गिरी थीं।
इस त्योहार में लाखों लोग शामिल होते हैं जिनमें संत, तीर्थयात्री और पर्यटक शामिल होते हैं।
नागा साधुओं के भव्य जुलूस और आध्यात्मिक प्रवचन मुख्य आकर्षण हैं।
कथा, प्रवचन, भक्ति संगीत, नृत्य और अनुष्ठान जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम त्योहार के अनुभव को समृद्ध करते हैं।
प्रयागराज कुंभ विशेष रूप से प्रसिद्ध है जो गंगा, यमुना और अदृष्य सरस्वती के पावन संगम पर आयोजित होता है।
2025 प्रयागराज महाकुंभ 13 जनवरी से 26 फरवरी तक आयोजित किया गया।
2025 प्रयागराज महाकुंभ इतिहास का सबसे बड़ा आयोजन साबित हुआ।
कुंभ मेला आस्था, एकता और भारत की समृद्ध आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।
प्रयागराज महाकुंभ में शाही स्नान का विशेष महत्व है। 2025 की शाही स्नान की तिथियां नीचे दी गई हैं–
13 जनवरी– : पौष पूर्णिमा
14 जनवरी : मकर संक्रांति
29 जनवरी : मौनी अमवस्या
3 फरवरी : बसंत पंचमी
12 फरवरी : माघी पूर्णिमा
26 फरवरी : महाशिवरात्रि
प्रयागराज महाकुंभ में मौनी अमावस्या पर उमड़ी भारी भीड़ के बाद 29 जनवरी को भगदड़ मच गई। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस भगदड़ में कम से कम 30 लाेगों के मारे जाने की खबर है। प्रयागराज महाकुंभ में लोगों की भारी भीड़ उमड़ रही है। ट्रेनों में लोग भरकर जा रहे हैं। प्रमुख शहरों से प्रयागराज जाने वाली फ्लाइट का किराया आसमान छू रहा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली से प्रयागराज का फ्लाइट का किराया दिल्ली से लंदन जाने के बराबर हो गया है। अब प्रमुख अखाड़ों के प्रमुख और अन्य साधु संतों ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि वे संगम पर स्नान करने की जिद न करें। किसी भी घाट पर स्नान कर सकते हैं। गंगा के सभी घाटों का जल अमृत तुल्य है। मेला क्षेत्र में वीआईपी प्रोटोकॉल हटा दिया गया है। कुंभ में जाने पर सावधानी रखें। भारी भीड़ वाले इलाके में जाने से बचें। स्नान के प्रमुख दिवस जिस दिन अधिक भीड़ होती है, उस दिन जानें से बचें।
महाकुंभ में देश के प्रमुख लोग भी पवित्र संगम में डुबकी लगाने पहुंचते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, कई केंद्रीय मंत्री, विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री, अभिनेता, अभिनेत्री, बिजनेसमैन अंबानी परिवार, वेदांता प्रमुख अनिल अग्रवाल समेत कई प्रमुख हस्तियां कुंभ पहुंची और प्रयाग संगम में डुबकी लगाई।
कुंभ मेला हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक समागम है, जो हर 12 वर्ष के चक्र में चार पवित्र स्थलों—प्रयागराज (उत्तर प्रदेश), हरिद्वार (उत्तराखंड), उज्जैन (मध्य प्रदेश) और नासिक (महाराष्ट्र)—पर आयोजित होता है। यह चक्र ज्योतिषीय संयोगों (सूर्य, चंद्र और बृहस्पति की स्थिति) पर आधारित है। 2025 में प्रयागराज में महाकुंभ लगा था।
महत्वपूर्ण नोट:
पूर्ण कुंभ: हर 12 वर्ष में एक बार।
अर्ध कुंभ: हर 6 वर्ष में (हरिद्वार और प्रयागराज में)।
महाकुंभ: हर 144 वर्ष में प्रयागराज में (2025 के बाद अगला 2169 में)।
तिथियां अनुमानित हैं और ज्योतिषीय गणना के आधार पर थोड़ी बदल सकती हैं। सटीक जानकारी के लिए आधिकारिक स्रोत (जैसे राज्य सरकारें या ज्योतिषी) देखें।
नीचे 2025 के बाद के प्रमुख कुंभ मेलों का विवरण तालिका में दिया गया है (अगले 50 वर्षों तक, स्रोतों के आधार पर)। यह चक्र 2027 से नासिक से शुरू होता है, फिर उज्जैन, हरिद्वार, प्रयागराज और आगे।
वर्ष (अनुमानित) | प्रकार | स्थान | अनुमानित तिथियां | मुख्य नदी/घाट | विशेष बातें |
2027 | पूर्ण कुंभ | नासिक (त्र्यंबकेश्वर) | अगस्त-सितंबर (सिंह राशि संयोग) | गोदावरी नदी | अमृत बूंदें गिरने की कथा से जुड़ा; लाखों साधु भाग लेंगे। |
2028 | पूर्ण कुंभ (सिंहस्थ) | उज्जैन | 27 मार्च से 27 मई | क्षिप्रा नदी | गुरु सिंह राशि और सूर्य मेष राशि में; भस्म आरती प्रसिद्ध। |
2033 | अर्ध कुंभ | हरिद्वार | अप्रैल-मई (मेष संयोग) | गंगा नदी | 6 वर्ष बाद प्रयागराज का अर्धकुंभ; कुंभ मेला का प्रतीक। |
2034 | अर्ध कुंभ | प्रयागराज | जनवरी-फरवरी | त्रिवेणी संगम (गंगा-यमुना-सारस्वती) | 2025 महाकुंभ के 9 वर्ष बाद; शाही स्नान प्रमुख। |
2036 | पूर्ण कुंभ | नासिक (त्र्यंबकेश्वर) | अगस्त-सितंबर | गोदावरी नदी | 12 वर्ष चक्र का हिस्सा; सिम्हस्थ कुंभ। |
2037 | पूर्ण कुंभ (सिंहस्थ) | उज्जैन | मार्च-अप्रैल | क्षिप्रा नदी | विक्रम संवत 2094 में; महाकालेश्वर मंदिर केंद्रीय। |
2041 | पूर्ण कुंभ | हरिद्वार | अप्रैल-मई | गंगा नदी | सूर्य मेष और बृहस्पति कुंभ राशि में। |
2042 | महाकुंभ | प्रयागराज | जनवरी-फरवरी | त्रिवेणी संगम | 2025 के 17 वर्ष बाद (पूर्ण चक्र); करोड़ों श्रद्धालु। |
2047 | अर्ध कुंभ | नासिक | जुलाई-अगस्त | गोदावरी नदी | 6 वर्ष चक्र; स्थानीय परंपराओं से जुड़ा। |
2048 | अर्ध कुंभ | उज्जैन | फरवरी-मार्च | क्षिप्रा नदी | सिंहस्थ का अर्ध रूप; आध्यात्मिक महत्व। |
2053 | अर्ध कुंभ | हरिद्वार | मार्च-अप्रैल | गंगा नदी | हरिद्वार का द्विवर्षीय चक्र। |
2054 | अर्ध कुंभ | प्रयागराज | जनवरी-फरवरी | त्रिवेणी संगम | प्रयागराज का नियमित अर्धकुंभ। |
नोट : ये वर्ष अनुमान के आधार पर दिए गए हैं। ज्योतिष गणना के बाद इन तिथियों में परिवर्तन संभव है।
कुंभ मेले का चक्र कैसे तय होता है?
ज्योतिषीय आधार: कुंभ मेला तब लगता है जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति विशेष राशियों में होते हैं। उदाहरण:
नासिक: सूर्य और बृहस्पति सिंह राशि में।
उज्जैन: सूर्य मेष और बृहस्पति सिंह राशि में।
हरिद्वार: सूर्य मेष और बृहस्पति कुंभ राशि में।
प्रयागराज: सूर्य मकर और बृहस्पति मेष राशि में।
ऐतिहासिक संदर्भ: समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा, जहां अमृत की बूंदें इन चार स्थानों पर गिरीं। यूनेस्को ने इसे मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर घोषित किया है।
प्रभाव: प्रत्येक कुंभ में 5-10 करोड़ श्रद्धालु आते हैं।
महत्वपूर्ण प्रश्न :
कुंभ, महाकुंभ और अर्ध कुंभ में क्या अंतर है?
कुंभ, अर्धकुंभ और महाकुंभ अलग-अलग समय और स्थानों पर आयोजित होने वाले पवित्र मेले हैं, जो ज्योतिषीय गणना पर आधारित होते हैं। कुंभ मेला हर 3 साल में चार पवित्र स्थानों (प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) में से किसी एक पर आयोजित होता है। अर्धकुंभ हर 6 साल में सिर्फ़ प्रयागराज और हरिद्वार में होता है। महाकुंभ हर 144 साल बाद प्रयागराज में आयोजित होने वाला सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण आयोजन है।
कुंभ मेला
कब : हर 3 वर्ष में, बारी-बारी से एक स्थान पर आयोजित होता है।
कहां : प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक में से किसी एक स्थान पर इसका आयोजन होता है।
महत्व : यह मुख्य कुंभ आयोजन है जो एक चक्रीय प्रक्रिया का हिस्सा है।
अर्धकुंभ
कब : हर 6 साल में एक बार आयोजित होता है।
कहां : केवल प्रयागराज और हरिद्वार में आयोजित होता है।
महत्व : इसे कुंभ का "आधा" या मध्यवर्ती पर्व माना जाता है, जिसमें पूर्णकुंभ की परंपराएं ही छोटे स्तर पर मनाई जाती हैं।
महाकुंभ
कब : हर 144 साल में एक बार आयोजित होता है। वर्ष 2025 में महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में भव्य तरीके से हुआ।
कहां : यह केवल प्रयागराज में ही आयोजित होता है।
महत्व : इसे सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण आयोजन माना जाता है।
मुख्य अंतर:
अवधि : कुंभ में 3 साल का अंतराल होता है, जबकि अर्धकुंभ 6 साल और महाकुंभ 144 साल का अंतराल रखता है।
स्थान : कुंभ के चार स्थान हैं, अर्धकुंभ केवल दो स्थान (प्रयागराज और हरिद्वार) पर होता है, और महाकुंभ केवल प्रयागराज में ही होता है।
पैमाना : अर्धकुंभ पूर्णकुंभ की तुलना में छोटे पैमाने पर होता है, जबकि महाकुंभ सबसे बड़े और ऐतिहासिक महत्व वाला आयोजन होता है।
महत्वपूर्ण प्रश्न :
अगला कुंभ मेला और महाकुंभ मेला कब और कहां होगा?
प्रयागराज के बाद अगला महाकुंभ महाराष्ट्र के नासिक जिले में आयोजित होगा। 2027 में नासिक से लगभग 38 किमी दूर त्र्यंबकेश्वर में कुंभ मेले का आयोजन किया जाएगा। नासिक में 17 जुलाई से 17 अगस्त तक कुंभ मेला चलेगा। नासिक के गोदावरी तट पर लगने वाला यह कुंभ मेला 17 जुलाई दिन शनिवार से शुरू होगा। नासिक कुंभ मेले का समापन 17 अगस्त 2027 दिन मंगलवार को होगा। नासिक में पिछला सिंहस्थ कुंभ मेला 2015-16 में आयोजित किया गया था।
उज्जैन में 2028 में कुंभ मेला लगेगा। नासिक के बाद 2028 में पूर्ण कुंभ मेला उज्जैन में होगा। उज्जैन कुंभ मेला साल 2028 में 27 मार्च से 27 मई 2028 तक उज्जैन में लगेगा। इस महापर्व में 9 अप्रैल से 8 मई तक 3 शाही स्नान और 7 पर्व स्नान प्रस्तावित हैं। उज्जैन में आखिरी कुंभ मेला 2016 में लगा था।
उत्तराखंड के हरिद्वार में अगला पूर्ण कुंभ मेला 2033 में आयोजित किया जाएगा, जो 14 जनवरी 2033 से शुरू होकर 27 अप्रैल 2033 को समाप्त होगा। इससे पहले 2021 में हरिद्वार में एक पूर्ण कुंभ लगा था।
प्रयागराज में महाकुंभ की बात करें तो, शास्त्रों के मुताबिक महाकुंभ 144 साल में एक बार आयोजित होता है। 2025 के बाद अब अगला महाकुंभ 2169 में होगा। 2034 में प्रयागराज में अर्धकुंभ मेला आयोजित किया जाएगा।
प्रयागराज – ग्रहों के राजा सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं और बृहस्पति वृषभ राशि में होते हैं, तब कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में किया जाता है।
नासिक – जब सिंह राशि में सूर्य और बृहस्पति ग्रह विराजमान रहते हैं, तब कुंभ मेले का आयोजन महाराष्ट्र के नासिक में लगता है।
हरिद्वार – जब सूर्य मेष राशि में तो बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं, तब कुंभ का मेला हरिद्वार में लगता है।
उज्जैन – जब सूर्य मेष राशि में तो बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं, तब कुंभ मेले का आयोजन उज्जैन में किया जाता है।
Frequently Asked Questions (FAQs)
कुंभ भारत के चार पवित्र शहरों में इन नदियों के तट पर आयोजित होता है।
हरिद्वार में गंगा के तट पर
उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर (Ujjain Kumbh Mela in hindi)
नासिक में गोदावरी (दक्षिण गंगा) के तट पर
प्रयागराज में गंगा, यमुना और पौराणिक अदृश्य सरस्वती के संगम पर।
श्रद्धालु कुंभ के दौरान इन पवित्र नदियों में स्नान कर मोक्ष प्राप्त करने की कामना करते हैं।
यूपी के प्रयागराज में सबसे बड़ा कुंभ मेला लगता है। प्रयाग के कुंभ का विशेष महत्व रहा है, यहीं पर पूर्ण कुंभ और महाकुंभ का आयोजन होता है, बाकी जगह नहीं होता।
हर 12 साल में चारों जगहों हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन होता है। जबकि अर्धकुंभ का आयोजन केवल प्रयागराज और हरिद्वार में होता है। दोनों जगह हर 6 साल में अर्धकुंभ होता है। पूर्ण कुंभ मेला सिर्फ प्रयागराज में हर 12 साल में आयोजित होता है। महाकुंभ दुर्लभ आयोजन है जोकि 12 पूर्ण कुंभ लग जाने के बाद यानी 144 साल बाद आता है, जिसे महाकुंभ मेला कहते हैं। यह सिर्फ प्रयागराज में आयोजित होता है।
अगला कुंभ वर्ष 2027 में नासिक-त्र्यंबकेश्वर में लगेगा। उत्तर प्रदेश के प्रयाणराज में महाकुंभ के बाद महाराष्ट्र सरकार वर्ष 2027 में लगने वाले नासिक-त्र्यंबकेश्वर सिंहस्थ महाकुंभ को भव्य और दिव्य बनाने के लिए अभी से ही तैयारी में लग गई है। उसके बाद का कुंभ उज्जैन (Ujjain Kumbh Mela in hindi) में आयोजित होगा। उज्जैन कुंभ मेला साल 2028 में 27 मार्च से 27 मई 2028 तक उज्जैन में लगेगा। उज्जैन के कुंभ मेले को सिंहस्थ मेला भी कहते हैं। यह मेला शिप्रा नदी के तट पर लगता है। इस मेले में लाखों तीर्थयात्री आते हैं। उज्जैन में 12 साल के बाद कुंभ का आयोजन होगा। इससे पहले उज्जैन में पिछला कुंभ मेला साल 2016 में लगा था। यह मेला हर 12 साल में लगता है।
मध्यप्रदेश में कुभ मेला क्षिप्रा नदी के तट पर उज्जैन में लगता है।
हां, प्रयागराज में 2025 का कुंभ महाकुंभ है।
कुंभ मेले की कई विशेषताएं हैं। कुछ लोग कुंभ मेले को सिर्फ़ एक धार्मिक आयोजन के रूप में देखते हैं, लेकिन वर्षों से यह मानवता के उत्सव के रूप में विकसित हुआ है, जहाँ लाखों लोग शांतिपूर्वक एकत्रित होते हैं और साधारण के बीच छिपी कुछ असाधारण चीज़ों को खोजते हैं। और राख से लिपटे और रहस्यमय नागा साधु, जो सभी सांसारिक सुखों के त्याग का प्रतीक हैं, कुंभ मेले का प्रमुख चेहरा हो सकते हैं। लेकिन यह आम नागरिकों का अदम्य साहस है जो बड़ी संख्या में आते हैं और इस उत्सव को एक गहन और रहस्यमय सामुदायिक अनुभव में बदल देते हैं, जहां नास्तिकों और आस्तिक दोनों के मन में अविस्मरणीय यादें अंकित हो जाती हैं।
कुंभ मेले का आयोजन 12 साल में होने के पीछे खगोलीय और पौराणिक कारण हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, अमृत कलश लेकर जाते समय देवताओं का युद्ध 12 दिनों तक चला था, जिसे मनुष्यों के 12 वर्षों के बराबर माना जाता है। ज्योतिषीय रूप से, यह तब होता है जब बृहस्पति अपनी 12 राशियों का एक चक्कर पूरा करते हैं और सूर्य के साथ एक विशेष राशि में आते हैं।
पौराणिक कारण
अमृत कलश और जयंत : ऐसा माना जाता है कि जब देवताओं और दानवों के बीच अमृत कलश के लिए युद्ध हुआ था, तब जयंत नामक देवता ने अमृत कलश को स्वर्ग ले जाने में 12 दिन लगाए थे।
देवताओं का दिन और मनुष्य का वर्ष : देवताओं के 12 दिनों को मनुष्यों के 12 वर्षों के बराबर माना जाता है। इसी के संदर्भ में, कुंभ मेले का आयोजन हर 12 साल में होता है।
ज्योतिषीय कारण
ग्रहों का संरेखण: कुंभ मेले का आयोजन सूर्य और बृहस्पति ग्रहों की विशिष्ट ज्योतिषीय स्थिति पर निर्भर करता है।
बृहस्पति का 12 वर्ष का चक्र : बृहस्पति ग्रह को अपनी कक्षा में 12 राशियों का एक पूरा चक्कर लगाने में लगभग 12 वर्ष लगते हैं।
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