स्वतंत्रता का मंत्र : वंदे मातरम पर निबंध
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स्वतंत्रता का मंत्र : वंदे मातरम पर निबंध

Mithilesh KumarUpdated on 28 Nov 2025, 04:17 PM IST

राष्ट्र गीत वंदे मातरम के 150 साल पूरे हो चुके हैं। गणतंत्र दिवस 2026 के आयोजन से पहले भारत सरकार की ओर से एक निबंध प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है जिसका विषय है –स्वतंत्रता का मंत्र : वंदे मातरम। इस लेख में इस विषय पर निबंध लिखने में मदद मिलेगी। राष्ट्र गीत वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने के मौके पर देशभर में अलग-अलग कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। वंदे मातरम को हर किसी ने कभी न कभी जरूर गाया होगा। इसे सुनते ही स्कूल असेंबली की यादें ताजा हो जाती हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि वंदे मातरम का असली मतलब क्या होता है? वंदे मातरम किसलिए प्रसिद्ध है? कैसे यह भारत की आजादी का जयघोष बना? ज्यादातर लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती है. ऐसे में आज हम आपको इसके बारे में विस्तार से बताएंगे।

स्वतंत्रता का मंत्र : वंदे मातरम पर निबंध
स्वतंत्रता का मंत्र : वंदे मातरम पर निबंध

स्वतंत्रता का मंत्र : वंदे मातरम कैसे बना?

बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने साल 1875 में इस गीत को लिखा था. इसके बाद रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसे गाने के रूप में पेश किया. 1896 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार ये गीत गाया गया. ये एक ऐसा गीत था, जो उस दौर में आंदोलन का प्रतीक बन गया और हर जुबान पर चढ़ गया, इसकी धुन सुनते ही लोगों में देशभक्ति की लहर दौड़ पड़ती थी और यही वजह है कि अंग्रेजों ने इस पर बैन भी लगा दिया था. यही वजह है कि 24 जनवरी 1950 में इसे राष्ट्रीय गीत के तौर पर चुना गया था.

“वंदे मातरम” केवल दो शब्द नहीं, अपितु भारत की स्वतंत्रता-साधना का वह पवित्र मंत्र है जिसने लाखों भारतीयों के हृदय में राष्ट्र-प्रेम की ज्योति जलाई, बलिदान की प्रेरणा दी और साम्राज्यवाद के विरुद्ध एक स्वर में विद्रोह की लहर पैदा की। यह मंत्र आज भी हमारे राष्ट्रीय गीत के रूप में जीवंत है और हर भारतीय के लिए मातृभूमि के प्रति कृतज्ञता एवं समर्पण का प्रतीक है।

“वंदे मातरम” गीत सर्वप्रथम बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने ऐतिहासिक उपन्यास “आनंदमठ” (1882) में लिखा। उपन्यास की पृष्ठभूमि 18वीं शताब्दी का बंगाल है, जब सन्यासियों ने अंग्रेजी शासन और स्थानीय अत्याचारों के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष किया था। इस गीत में भारत माँ को देवी के रूप में चित्रित किया गया है – जो दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का संयुक्त स्वरूप है। गीत की प्रथम दो पंक्तियाँ ही इतनी ओजस्वी हैं कि वे पूरे देश में आग की तरह फैल गईं :

वंदे मातरम् !

सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्

शस्यशामलां मातरम् ॥

इसका अर्थ है – मैं मातृभूमि को नमस्कार करता हूँ, जो जल से परिपूर्ण, फलों से समृद्ध, मलय पर्वत की शीतल हवा से सुगंधित और हरियाली से ढकी हुई है।

वंदे मातरम गाने वाला क्रांतिकारी

जब 1905 में बंग-भंग के विरुद्ध स्वदेशी आंदोलन आरंभ हुआ, तब “वंदे मातरम” जन-जन का युद्ध-घोष बन गया। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने स्वयं इसे गाया, लाला लाजपत राय, विपिनचंद्र पाल, अरविंद घोष जैसे क्रांतिकारी नेता इसे दोहराते हुए जेल गए। सड़कों पर, सभाओं में, स्कूल-कॉलेजों में यह गूँजने लगा। ब्रिटिश सरकार इतनी भयभीत हुई कि उसने इस गीत को गाने-बजाने पर प्रतिबंध लगा दिया। फलस्वरूप इसे गाने वाला प्रत्येक व्यक्ति क्रांतिकारी घोषित कर दिया जाता था।

वंदे मातरम ने कांग्रेस को एकजुट किया

इस गीत की शक्ति का एक जीवंत उदाहरण 1907 का सूरत अधिवेशन है। जब कांग्रेस दो गुटों में बँटने को थी, तब हजारों कार्यकर्ताओं ने एक साथ “वंदे मातरम” गाकर ऐसा वातावरण बनाया कि मतभेद भूलकर सब एक हो गए। इसी प्रकार 1920-22 के असहयोग आंदोलन, 1930 के नमक सत्याग्रह और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में यह गीत हर आंदोलनकारी के होंठों पर था। जेलों में फाँसी के तख्ते पर चढ़ते हुए क्रांतिकारी “वंदे मातरम” का जयघोष करते थे – भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, चंद्रशेखर आजाद जैसे अमर बलिदानियों की अंतिम पुकार यही थी।

14 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने ऐतिहासिक भाषण में कहा कि “जब दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता की नई सुबह के लिए जागेगा”, तो उसके ठीक बाद संसद भवन में “वंदे मातरम” का सामूहिक गान हुआ। वह क्षण भारत की सात सौ वर्षों की परतंत्रता के अंत और स्वाधीनता के प्रारंभ का पवित्र क्षण था।

कैसे गाते हैं वंदे मातरम

आज भी “वंदे मातरम” हमारे राष्ट्रीय गीत के रूप में संविधान द्वारा मान्य है। इसे गाने का नियम है कि इसे खड़े होकर, पूर्ण श्रद्धा और गौरव के साथ गाया जाए। यह गीत हमें स्मरण कराता है कि स्वतंत्रता कोई स्थिर वस्तु नहीं, बल्कि निरंतर संघर्ष और जागरूकता से प्राप्त होने वाली उपलब्धि है। जब-जब देश पर संकट आया – चाहे 1962, 1965, 1971 का युद्ध हो या 1999 का कारगिल – “वंदे मातरम” ने फिर से सैनिकों और नागरिकों को एक सूत्र में बाँध दिया।

आज के परिप्रेक्ष्य में “वंदे मातरम” केवल अतीत का गौरव गान नहीं, बल्कि भविष्य का आह्वान है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारी मातृभूमि अभी भी कई चुनौतियों से जूझ रही है – गरीबी, भ्रष्टाचार, सामाजिक असमानता, सीमा पर खतरे। इन सबके विरुद्ध लड़ाई में भी यही मंत्र हमें एकजुट करता है। जब हम “वंदे मातरम” कहते हैं, तो हम केवल भारत की भूमि को नहीं, उसके संस्कृति, विविधता, सहिष्णुता और संकल्प को नमन करते हैं।

अंत में यही कहना समीचीन होगा कि “वंदे मातरम” भारत का वह अमर मंत्र है जिसने परतंत्र भारत को स्वतंत्र भारत बनाया और स्वतंत्र भारत को सशक्त, आत्मनिर्भर और गौरवशाली बनाने की प्रेरणा देता रहेगा। यह दो शब्द नहीं, सात सौ वर्षों के संघर्ष की गाथा हैं, करोड़ों बलिदानों का संग्रह हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वाधीनता की सबसे पवित्र प्रतिज्ञा हैं।

वंदे मातरम !

भारत माता की जय !

वंदे मातरम गीत के बारे में

वन्दे मातरम् ( Vande Mataram) बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा संस्कृत और बाँग्ला मिश्रित भाषा में रचित एक गीत है जिसका प्रकाशन सन् 1882 में उनके उपन्यास आनन्द मठ में अन्तर्निहित गीत के रूप में हुआ था। इस गीत से सदियों से सुप्त भारत देश जग उठा और आधी शताब्दी तक यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम का प्रेरक बना रहा।

इस उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम के संन्यासी द्वारा गाया गया है। इसकी धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनायी थी। इस गीत को गाने में 65 सेकेंड (1 मिनट और 5 सेकेंड) का समय लगता है।

स्वतंत्रता का मंत्र : वंदे मातरम् (200 शब्दों का निबंध)

“वंदे मातरम्” भारत की स्वतंत्रता संग्राम का सबसे ओजस्वी मंत्र है। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने 1870 के दशक में इसे लिखा और 1882 में अपने उपन्यास “आनंदमठ” में प्रकाशित किया। संस्कृत में रचित यह गीत भारत माँ को दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती के संयुक्त रूप में चित्रित करता है।

1905 के बंग-भंग विरोधी स्वदेशी आंदोलन में यह गीत पहली बार जन-जन का नारा बना। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसे गाया, अरविंद घोष, लाला लाजपत राय, विपिनचंद्र पाल जैसे नेता इसे दोहराते हुए जेल गए। ब्रिटिश सरकार ने इसे गाने पर प्रतिबंध लगा दिया, पर इससे क्रांति की ज्वाला और भड़क उठी। असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में लाखों भारतीयों ने “वंदे मातरम्” का जयघोष किया। फाँसी के तख्ते पर चढ़ते भगत सिंह, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद की अंतिम पुकार यही थी।

15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को स्वतंत्र भारत के पहले क्षण में संसद में यही गीत गूँजा। 24 जनवरी 1950 को इसे भारत का राष्ट्रीय गीत घोषित किया गया।

आज भी “वंदे मातरम्” हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता कोई उपहार नहीं, बलिदानों की अमानत है। यह मंत्र हमें एकता, देशभक्ति और निरंतर संघर्ष की प्रेरणा देता रहेगा।

वंदे मातरम् ! भारत माता की जय !


वंदे मातरम् (राष्ट्रीय गीत – पूर्ण मूल संस्कृत पाठ)

वन्दे मातरम्

सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्

शस्यशामलां मातरम् ।

शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम्

फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्

सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्

सुखदां वरदां मातरम् ॥

वन्दे मातरम् ॥

सप्तकोटिकण्ठकुलुण्डितराविणी

स्वरध्वनिविजृम्भितरञ्जिनी

ध्वनत्क्रान्तधरणी तल्लज्जिनी

विजयिनीं वीरजनुषाम् ।

त्वं विद्या त्वं धर्मः त्वम हृदी त्वं च प्राणाः

त्वमेव त्वमेव त्वमेव मातः ।

सप्तसागरसिन्धुमध्यपावनी

नमामि त्वां नमामि कमलामलां

सुखदां वरदां मातरम् ॥

वन्दे मातरम् ॥

(यह बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित मूल संस्कृत गीत है जो “आनंदमठ” उपन्यास में प्रकाशित हुआ था।)


सरकारी तौर पर स्वीकृत संक्षिप्त रूप (राष्ट्रीय गीत के रूप में गाया जाता है)

वन्दे मातरम्।

सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्

शस्यशामलां मातरम् ।

शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम्

फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्

सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्

सुखदां वरदां मातरम् ॥

वन्दे मातरम्।

(भारत सरकार द्वारा 24 जनवरी 1950 को यही प्रथम दो अंतरा (संक्षिप्त रूप) को आधिकारिक राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता दी गई है। इसे खड़े होकर पूर्ण सम्मान के साथ गाया जाता है।)


सरल हिंदी अर्थ (प्रथम दो छंदों का)

मैं मातृभूमि को नमस्कार करता हूँ

जो जल से परिपूर्ण है, फलों से समृद्ध है, मलय पर्वत की शीतल हवा से सुगंधित है,

हरियाली से ढकी हुई है – मेरी मातृभूमि!

जो चाँदनी रातों में आनंद से पुलकित होती है,

फूलों से लदे वृक्षों की डालियों से सुशोभित है,

हँसमुख है, मधुर भाषिणी है,

सुख देने वाली, वरदान देने वाली – मेरी मातृभूमि!

वन्दे मातरम् !